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________________ अमो भको] ७८५ कप्पेऊण य सहसा तिलं तिलं तत्थ निरयपालेहि। परिहिंसादोसेणं को बलि फुरफरतोऽहं ॥ ६६८ ॥ उक्खणिऊण य जीहं विरस बोल्लाविओ बला भीओ। अलियवयणदोसेणं दुक्खत्तो कंठगयपाणो ॥६६६॥ असिचक्कभिन्नदेहो बहुसो परदन्वहरणदोसेणं । विक्खित्तो छेत्तूणं दिसोदिसं गिद्धवंद्रेण ।। ६७०॥ परदारगमणदोसेण सिलि निरयजलणपज्जलियं । अवगृहावियपुब्वो जंतेसु य पीडिओ' धणियं ॥ ९७१ ॥ वायस सुणदिकाइएहि करुणं समारडतो य। खइओ बहुएहि दढं परिगगहारम्भदोसेप्यं ॥ ६७२ ॥ उक्कत्तिकण बहुसो विरसाइ खाविओ समसाइ। मंसम्मि लोलुयत्तणदोसेण आमपक्काई ॥६७३॥ कल्पयित्वा च सहसा तिलं तिलं तत्र निरयपालैः । परिहिंसादोषेण कृतो वलिं स्फुरन्नहम् ॥६६८।। उत्खाय च जिह्वां विरसं वादितो बलाद् भीतः । अलीकवचनदोषण दुःखार्तः कण्ठगतप्राणः ॥६६६॥ असिचऋभिन्नदेहो बहुशः परद्रव्यहरणदोषेण । विक्षिप्तश्छित्त्वा दिशि दिशि गृध्रवृन्देण ॥९७०॥ परदारगमनदोषेण शाल्मलि निरयज्वलनप्रज्वलितम् । अवगूहितपूर्वो यन्त्रेषु च पीडितो गाढम् ॥६७१।। वायसशुनकढंकादिभिः करुणं समारटंश्च । खादितो बहुभिर्दू ढं परिग्रहारम्भदोषेण ॥९७२॥ उत्कर्त्य बहुशो विरसानि खादितः स्वमांसानि । मांसे लोलुपत्वदोषेण आमपक्वानि ॥६७३।। नरकयाजों ने परहिंसा के दोष से एकाएक कांपते हुए मुझे तिल-तिल काटकर मेरी बलि दी है। झूठ बोलने के दोष से, दुःख से आर्त कण्ठगत प्राणवाले तथा डरे हुए मेरी जीभ उखाड़कर जबरदस्ती खराब शब्द कराया गया। दूसरे के धन का आहरण करने के दोष से अनेक बार तलवार और चक्र से भिदा हुआ शरीरवाला मैं गृध्रसमूह द्वारा छेदा जाकर दिशा-दिशा में बिखेर दिया गया। परस्त्री-गमन के दोष से, नरक की आग से पहले से ही प्रज्वलित शाल्मली वृक्ष से (मेरा) आलिंगन कराया गया और यन्त्रों से (आलिंगन कराकर) अत्यधिक पीड़ित किया गया । परिग्रह और आरम्भ के दोष से करुण शब्द करते हुए कौआ. कुत्ता तथा ढंकादि से अनेक बार भरपुर खाया गया । मांस में प्रतिलोलुपता के झोष से नीरस तथा कच्चे-पक्के अपने ही मांस को अनेक बार पीलियो पा.हा., गुणयककका पहिया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001882
Book TitleSamraicch Kaha Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1996
Total Pages450
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size11 MB
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