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________________ अट्ठमो भवो ] दिन्ना असोयदेवी तइया तुझं सुभूसणनिवेण । परिणीया य तए वि य सुपसत्थविवाहजोएण ॥८६१॥ भुजंताण पयामं विसयसुहं नवर वच्चए कालो। तम्हाण सपरिओसं अन्नोन्नं बद्धरायाणं ॥८६२॥ अह अन्नया पिया ते पलियं दळूण जायसंवेओ। दाऊण तुज्झ रज्जं देवीए समं स पव्वइओ ॥८६३॥ जाओ य तुमं राया निज्जियनियमंडलो सरज्जम्मि । चिट्ठसि विसयपसत्तो भुंजतो मणहरे भोए ।।८६४॥ अह तिरिय विसंजोयणनियतग्घायजणियकम्मरस । एत्थंतरम्मि विरसो साक्य जाओ विवाओ त्ति ॥८९५॥ आसि तहि चिय विजए' भंभानयर म्मि सिरिबलो राया। तेण सह तुज्झ जाओ अणिमित्तो विग्गहो कहवि ॥८६६॥ दत्ता अशोकदेवी तदा तव सभूषणनपेण । परिणोता च त्वयाऽपि च सुप्रशस्तविवाहयोगेन ॥८६१॥ भजतो: प्रकामं विषयसुखं नवरं व्रजति कालः । युवयोः सपरितोषमन्योन्यं बद्धरागयोः ।।८६२॥ अथान्यदा पिता ते पलितं दृष्ट्वा जातसंवेगः । दत्त्वा तव राज्यं देव्या समं स प्रवजितः ॥८६३॥ जातश्च त्वं राजा निजितनिजमण्डलः स्वराज्ये । तिष्ठसि विषयप्रसक्तो भुजन् मनोहरान् भोगान् ।।८६४।। अथ तिर्यविसंयोजननिर्दयतद्घातजनितकर्मणः । अत्रान्तरे विरसः श्रावक ! जातो विपाक इति ।।८६५।। आसीत्तत्रैव विजये भंभानगरे श्रीबलो राजा।। तेन सह तव जातोऽनिमित्तो विग्रहः कथमपि ॥८६६।। निवास यौवन को प्राप्त हुए। तब सुभूषण राजा ने तुम्हें अशोकदेवी दी। तुमने भी उसे शुभविवाह के योग में विवाहा । सन्तोषसहित परस्पर राग में बँधे हुए, इच्छानुसार विषयसुख को भोगते हुए तुम दोनों का समय बीता। तदनन्तर तुम्हारे पिता पके हुए बाल को देखकर विरक्त हो गये और तुम्हें राज्य दे महारानी के साथ प्रवजित हो गये। अपने मण्डल को जीते हुए तुम अपने राज्य पर राजा के रूप में विराजमान हुए और विषयों में अनुरक्त हो मनोहर भोगों को भोगते हुए रहने लगे। इसके बाद तिर्यंचों का वियोग और निर्दयतापूर्वक उनका घात करने के दुष्ट कर्मों का फल इसी बीच, हे श्रावक, तुम्हारे उदय में आया । उसी देश के भम्भानगर में श्रीबल नाम का राजा था। उसके साथ तुम्हारा बिना कारण ही किसी प्रकार युद्ध हुआ । तुम्हारे जो प्रधान योद्धा थे वे १. विजोयण-डे. ज्ञा.। २. चियदि समल्लीए रवानमारमि--- हा.। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001882
Book TitleSamraicch Kaha Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1996
Total Pages450
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size11 MB
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