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________________ ७३८ [समराइन्धकहा तत्थासि पत्थिवो वासवो व्व चरपरिसलोयणसहस्सो। सइ वढियविसयसुहो नामेणं कुरुमियंको ति ॥८८५॥ तस्सासि अग्गमहिसी देवी नामेण बालचंद त्ति। तीसे गम्भम्मि तमं चइऊण सुहम्मि उववन्नो ॥८८६॥ देवी वि य ते रन्नो सास्स सुभसणस्स गेहम्मि । उववन्ना कयउण्णा कुरुमइदेवीए कुच्छिसि ॥८८७॥ ताण बहुएहि दोण्ह वि मणोरहसएहि दिणे पसथम्मि। जायाइ तया तुब्भे रूवाइगणेहि कलियाई ॥८८८॥ तत्य य समरमियंको नाम तह ठावियं गुरुयणेण । देवीए वि य नाम असोयदेवि त्ति संगीयं ।।८८६॥ कालेण दोण्णि वि तओ सयल कलागहणदुस्वियड्ढाइं। कुसुमाउहवरभवणं जोवणमह तत्थ पत्ताई॥८६०॥ तत्र सीत् पार्थिवो वासव इव चरपरुषलोचनसहस्रः । सदा वधितविषयसुखो नाम्ना कुरुमृगाङ्क इति ।।८८५।। तस्यासीदग्र महिषी देवी नाम्ना बालचन्द्रेति । तस्या गर्भे त्वं ३च्युत्वा सुखेनोपपन्नः ॥८८६।। देव्यपि च ते राज्ञः सालस्य सुभूषणस्य गहे । उपपन्ना कृतपण्या करुमतीदेव्याः कुक्षौ ।।८८७।। तयोर्बहुभिर्द्व योरपि मनोरथशतैः दिने प्रशस्ते। जाती तदा युवां रूपादिगुणैः कलितौ ।।८८८॥ तत्र च समरमगाङ्को नाम तव स्थापितं गरजनेन । देव्या अपि च नाम अशोकदेवीति संगीतम् ।।८८६।। कालेन द्वावपि ततः सकल कलाग्रहण दुर्विदग्धौ । कुसुमायुधवरभवनं यौवनमथ तत्र प्राप्तौ ॥८६०।। देवनगर के समान मालूम पड़ता था। वहाँ पर इन्द्र के समान गुप्तचर रूप हजार नेत्रोंवाला, सदैव विषयसुख को बढ़ाने वाला, 'कुरुमगांक' नाम का राजा था। उसकी पटरानी बालचन्द्रा नाम की महारानी थी। तुम च्युत होकर उसके गर्भ में सुखपूर्वक आये। तुम्हारी देवी भी राजा के साले सृभूषण के घर पुण्यवती कुरुमती देवी के उदर में आयी । तुम दोनों उन दोनों के सैकड़ों-सैकड़ों मनोरथों से शुभ दिन में उत्पन्न हुए। अनन्तर तुम दोनों रूप और गणों से युक्त हुए। वहाँ पर माता-पिता ने तुम्हारा नाम समरमृगांक और देवी का नाम अशोकदेवी रखा। समय पाकर तुम दोनों समस्त कलाओं के ग्रहण करने में निपुण हुए। पश्चात कामदेव के श्रेष्ठ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001882
Book TitleSamraicch Kaha Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1996
Total Pages450
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size11 MB
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