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अट्ठमो भवो]
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इय चितितो य तमं नहरेहि वियारिओ सुतिखेहि । कुविएण अकुवियमणो जायासहिओ मइंदेण ॥८७६॥ अहियासिओ य तमए जायासहिएण सो उवसग्गो। जो कुपुरिसाण सावय अच्चत्थं दुरहियासो ति ॥८८०॥ चइऊण तओ देहं विसुद्धचित्ताइ दो वि समकालं । सोहम्मे उववन्नाइ इढिमंताइ सयराहं ॥ ८८१॥ पलिओवमाउयाई तत्थ य भोए जहिच्छिए भोत्तुं । खोणाउयाइ तत्तो चइऊण इहेव दीवम्मि ॥८८२॥ जायाइ जत्थ जह वा संजोयं संदरं च पत्ताई। जह पाविओ य दुक्खं विरसं तह संपयं सुणसु ॥८८३॥ अवरविदेहे खेत्ते चक्क उरं नाम पुरवरं रम्म । उत्तुंगधवलपायारमंडियं तियसनयरं व ॥८८४॥
इति चिन्तयश्च त्वं नखरैर्विदारितः सुतीक्ष्णैः । कुपितेनाकुपितमना जायासहितो मृगेन्द्रेण ।।८७९॥ अध्यासितश्च (सोढश्च) त्वया जायास हितेन स उपसर्गः। यः कापुरुषाणां श्रावक ! अत्यर्थं दुरध्यास इति ।।८८०॥ त्यक्त्वा ततो देहं विशद्धचित्तौ द्वावपि समकालम् ॥ सौधर्मे उपपन्नौ ऋद्धिमन्तौ शीघ्रम् ॥८८१॥ पल्योपमायुष्कौ तत्र च भोगान् ययेप्सितान् भुक्त्वा । क्षीणायुष्कौ ततश्च्युत्वा इहैव द्वीपे ।।८८२॥ जातौ यत्र यथा वा संयोगं सन्दरं च प्राप्तौ। यथा प्राप्तश्च दु:खं विरसं तथा साम्प्रतं शृणु ॥८८३॥ अपरविदेहे क्षेत्रे चक्रपरं नाम पुरवरं रम्यम् । उत्तुङ्गधवलप्राकारमण्डितं त्रिदशनगरमिव ।।८८४॥
जब तुम ऐसा सोच ही रहे थे, कि कोपरहित मनवाले तुम्हें पत्नी सहित सिंह ने क्रोधाभिभूत हो तीक्ष्ण खूनों से चीर डाला। तुमने पत्नी सहित उस उपसर्ग को सहन किया जो हे श्रावक ! कायर पुरुषों के लिए अत्यन्त कठिन है। अनन्तर शरीर त्याग कर शुद्धि मनवाले तुम दोनों एक ही समय सौधर्म स्वर्ग में ऋद्धिधारी देव हुए। पल्योपम आयुवाले तुम दोनों वहाँ पर यथेष्ट भोग भोगकर, आयु क्षीण होने पर वहाँ से च्युत होकर, इस द्वीप में उत्पन्न हुए, जहाँ पर सुन्दर संयोग को पाकर भी जिस प्रकार कठिन दुःख को तुमने प्राप्त किया उसे श्री इस समय सुनें ॥८७६-२८३॥
गचिम बिहक्षेत्र में चकपुर नाम का सुन्दर नगर था, जो कि ये शुभ प्रकार से मण्डित होकर
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