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________________ अट्टमो भवो ] जोवसरीराणं पि हु भेयाभेओ तहोवलंभाओ । सुत्तामुत्तत्तणओ छिक्कम्मि पवेयणाओ य ॥ ८१६॥ उभययकडोभयभोगा तदभावाओ य होइ नायव्वो । Turfaceभावा सिं तह संभवाओ य ॥ ८२०॥ एत्थ सरीरेण कडं पाणवहासेवणाए जं कम्मं । तं खलु चित्तविवागं वेएइ भवंतरे जीवो ॥८२१॥ न उतं चैव सरीरं नरगाइसु तस्स तह अभावाओ । भिन्नकडवेयणम्मि य अइप्पसंगो बला होइ ॥ ८२२ ॥ एवं जीवेण कथं कूरमणश्एण जं कम्मं । तं पs रोद्दविवागं वेएइ भवंतरसरीरं ॥ ८२३॥ न उ केवलओ जोवो तेण विमक्कस्स वेयणाभावे । नय सो चेव तयं खलु लोगाइविरोह भावाओ ॥ ८२४॥ Jain Education International जीवशरीरयोरपि खलु भेदाभेदस्तथैवोपलम्भात् । मुक्तामुक्तत्वात् स्पृष्टे प्रवेदनातश्च ॥ ११६ ॥ उभयकृतोभयभोगात् तद्भावाच्च भवति ज्ञातव्यः । बन्धादिविषयभावात् तेषां तथा सम्भवाच्च ॥ ८२०॥ अत्र शरीरेण कृतं प्राणवधासेवनया यत्कर्म । तत् खलु चित्रविपाकं वेदयते भवान्तरे जीवः ॥ ६२१॥ न तु तदेव शरीरं नरकादिषु तस्य तथाऽभावात् । भिन्नकृत वेदने चातिप्रसंगो बलाद् भवति ॥ ८२२॥ एवं जीवेन कृतं क्रूरमनः प्रवत्तेन यत्कर्म । तत्प्रति रौद्रविपाकं वेदयते भवान्तरशरीरम् ॥ ८२३ ॥ न तु केवली जीवस्तेन विमुक्तस्य वेदनाभावे | न च स एव तत्खलु लोकादिविरोधभावात् ।। ८२४॥ अपने किये हुए कर्मों को कैसे भोगेगा ? क्योंकि वह एक स्वभाव वाली है। कर्मों के फल को भोगते समय उसके एक स्वभाव का नाश हो जायेगा। जीव और शरीर का भेदाभेद भी मुक्त और अमुक्त होने तथा स्पर्श होने और उनका अभाव, बन्धादि विषयों का द्वारा किया गया प्राणिबधादि सेवन अनुभव होने से प्राप्त होता है। दोनों के द्वारा किये हुए पारस्परिक भोग, सद्भाव और उनकी उत्पत्ति से प्राप्त हुआ जानना चाहिए । इस शरीर के रूप जो कर्म है उसका विचित्र फल दूसरे भव में जीव भोगता है । वही शरीर शरीर का वहाँ अभाव है । किये हुए कर्म से भिन्न का फल भोगना मानने पर इस प्रकार जीव क्रूर मन से प्रवृत्त होकर जो कर्म करता है, उसका भयंकर परिणाम दूसरे भव के शरीर में भोगता है | वेदनीय कर्म से रहित हुआ केवली उसके फल को नहीं भोगता है। लोकादि के विरोधी भाव होने नरकादि में नहीं है; क्योंकि वैसे बलात् अतिप्रसंग दोष होता है । ७२७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001882
Book TitleSamraicch Kaha Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1996
Total Pages450
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size11 MB
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