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________________ अट्ठमो भवो] ७२५. संतस्स सरूवेणं पररूवेणं तहा असंतस्स। हंदि विसिट्ठत्तणओ होति विसिट्ठा सुहाईया ॥८०७।। इहरा सत्तामेताइभावओ कह विसिट्टया तेसिं। तदभावम्मि तदत्थो हंदि पयत्तो महामोहो ॥८०८।। निच्चो वेगसहावो सहावभूयम्मि कह न सो' दुक्खे । तस्सुच्छेयनिमित्तं असंभवाओ पयट्टेज्जा ॥८०६।। एगंताणिच्चो वि य संभवसमणंतरं अभावाओ। परिणामिहेउविरहा असंभवाओ य तस्स ति ॥१०॥ न विसिटकज्जभावो अणईयविसिटकारणम्मि । एगंतभेयवक्खे नियमा तह भयपक्खे य ॥८११॥ पिंडो पडो व्व न घडो तप्फलमणईयपिंडभावाओ। तदईयत्ते तस्स उ तह भावादन्नयादित्तं ॥८१२॥ सतः स्वरूपेण पररूपेण तथाऽसतः । हन्दि (सत्यं) विशिष्टत्वाद् भवन्ति विशिष्टानि सुखादीनि ।।८०७॥ इतरथा सत्तामात्रादिभावतः कथं विशिष्टता तेषाम् । तदभावे तदर्थो हन्दि (सत्यं) प्रयत्नो महामोहः ।।८०८॥ नित्यो वैकस्वभावः स्वभावभूते कथं नु स दुःखे। तस्योच्छेदनिमित्तमसम्भवात् प्रवर्तेत ॥८०६॥ एकान्तानित्योऽपि च सम्भवसमनन्तरमभावाद् । परिणामिहेतुविरहादसम्भवाच्च तस्येति ॥८१०॥ न विशिष्ट कार्यभावोऽनतीतविशिष्टकारणत्वे। एकान्तभेदपक्षं च नियमात्तथाऽभेदपक्ष च ।।८११॥ पिण्ड: पट इव न घटस्तत्फलमनतीतपिण्डभावात् । तदतीतत्वे तस्य तु तथा भावादन्यतादित्वम् ।।८१२।। है। वस्तु स्वरूप से सत् है, पररूप से असत है। सत्य की विशिष्टता से सुखादि विशिष्ट होते हैं । दूसरे प्रकार से पदार्थ को सत्ता मात्र माननेवालों में विशिष्टता कैसे हो सकती है ? अनेक धर्म न मानकर उस पदार्थ के सत्य को जानना महामोह है । नित्य और एक स्वभाववाली आत्मा मानने पर दुःख होने पर उस(दुःख) के नाश का प्रयत्न करना असम्भव है। वस्तु को एकान्त रूप से अनित्य मानोगे तो उत्पत्ति के बाद ही उसका जायेगा । एकान्तभेद-पक्ष अथवा एकान्त-अभेद-पक्ष में परिणामी कारण के बिना वह वस्तु असम्भव हो जायेगी। विशिष्ट कारण विद्यमान न होने पर विशिष्ट कार्य नहीं होता है । पिण्ड पट के समान घट नहीं है; क्योंकि पिण्ड पदार्थ वर्तमान है। पिण्ड पर्याय के अतीत हो जाने पर वह पर्याय अन्य हो जाती है। इसी प्रकार अपनी १. सुहदुक्खे-पा. ज्ञा.। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001882
Book TitleSamraicch Kaha Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1996
Total Pages450
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size11 MB
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