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________________ ७२४ [समराइच्चकहा एएणं वाहिज्जइ संभवइ य तं दुगं न नियमेणं । एएण जो समेओ सो उण छेएण नो सुद्धो ॥८०१॥ जह देवाणं संगीयगाइकज्जम्मि उज्जमो जइणो। कंदप्पाईकरणं असम्भवयणाभिहाणं च ।८०२॥ तह अन्नधम्मियाणं उच्छेओ भोयणं गिहे गमणं । असिधारगाइ एवं पावं बज्झं अणुढाणं ।।८०३॥ जीवाइभाववाओ जो दिद्वैट्ठा[इ] नो खलु विरुद्धो। बंधाइसाहगो तह एत्थ इमो होइ तावो त्ति ॥८०४॥ एएण जो विसुद्धो सो खल तावेण होइ सुद्धो ति। एएणं चासुद्धो असुद्धओ होइ नायव्वो ॥८०५॥ संतासंते जीवे निच्चाणिच्चे य गधम्मे य। जह सुहबंधाइया जुज्जति न अन्नहा नियमा ॥८०६॥ एतेन बाध्यते सम्भवति च तद् द्विकं न नियमेन । एतेन यः समेतः स पुनश्छेदेन नो शुद्धः ।।८०१।। यथा देवानां संगीतकादिकार्ये उद्यमो यतेः । कन्दर्पादिकरणमसभ्यवचनाभिधानं च ।। ८०२।। तथाऽन्यधार्मिकाणामुच्छे दो (मुद्वेगो) भोजनं गहे गमनम्। असिधारकाद्येतत् पापं बाह्यमनुष्ठानम् ।।८०३।। जीवादिभाववादो यो दृष्टेष्टाभ्यां नो खलु विरुद्धः । बन्धादिसाधकस्तथा अत्रायं भवति ताप इति ॥८०४॥ एतेन यो विशुद्धः स खलु तापेन भवति शुद्ध इति । एतेन चाशुद्धोऽशुद्ध को भवति ज्ञातव्यः । ८०५।। सदसति जीवे नित्यानित्ये चानेकधर्मे च। यथा सुखबन्धादिका युज्यन्ते नान्यथा नियमात् ।। ८०६।। बाधित हो सकता है वह उन दो-संयम और योग-का नियम से पालन नहीं करता है। इससे जो युक्त है अर्थात् जो संयम और योग से रहित है वह छेद से शुद्ध नहीं हो पाता है। जैसे देवादि की संगीतकार्य में रुचि होती है उसी प्रकार यति का कामी होना, असत्य वचन बोलना, भोजनगृह में जाने के लिए अन्य धार्मिकों को उद्विग्न करना, तलवार धारण करना-ये पापकारक बाह्य अनुष्ठान हैं। जो जीवादि तत्त्वों की श्रद्धा रखने वाला है वह निश्चित रूप से प्रत्यक्ष और आगम का विरोधी नहीं है। बन्धादि के साधक पदार्थ वगैरह रखने से उसे संताप होता है । इससे जो विशुद्ध है वह सन्ताप से शुद्ध (मुक्त) हो जाता है । इससे जो अशुद्ध है, वह अशुद्ध है-ऐसा जानना चाहिए। सत्-असत्, नित्य-अनित्य और अनेक धर्मवाले प्राणी में सुख बन्धादि का योग होता है, अन्य किसी नियम से अर्थात् एकान्त नित्य अथवा एकान्त अनित्य आदि से सुख बन्धादि का योग नहीं होता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001882
Book TitleSamraicch Kaha Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1996
Total Pages450
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size11 MB
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