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________________ ७२२ [समराइचकहा एएहि जो न सुद्धो अन्नयरम्मि व न सुठ्ठ निव्वडिओ। सो तारिसओ धम्मो नियमेण फले विसंवयइ ।। ७८६।। एसो य उत्तिमो जं पुरिसत्थो एत्थ वंचिओ नियमा। वंचिज्जइ सयलेसु कल्लाणेसुं न संदेहो ॥७६०॥ एत्थ य अवंचिओ ण हि चिज्जइ तेस जण तेणेसो। सम्म परिक्खियवो बुहेहिमइनिउणदिट्ठीए ।७६१॥ सहुमो असेसविसओ सावज्जे जत्थ अस्थि पडिसेहो। रायाइविउडणसह झाणाइ य एस कससुद्धो ॥७६२।। जह मणवइ काहि परस्स पीडा दढं न कायव्वा । झाएपव्वं च सया रागाइविपक्खजालं तु ॥७६३।। थूलो न सवविसओ सावज्जे जत्थ होइ पडिसेहो। रागाइविउडणसहं न य झाणाइ वि तयासुद्धो ॥७९४॥ एतैर्यो न शुद्धोऽन्यत रस्मिन् वा न सुष्ठु निर्वृ त्तः । स तादृशो धर्मो नियमेन फले विसंवदति ।।।।७८६।। एष चोत्तमो यत् पुरुषार्थोऽत्र वञ्चितो नियमात् । वञ्च्यते सकलेषु कल्याणेषु न सन्देहः ॥७६०॥ अत्र चावञ्चितो न हि वञ्च्यते तेषु येन तेनैषः । सम्यक् परीक्षितव्यो बुधैरतिनिपुणदृष्टया ॥७६१॥ सूक्ष्मोऽशेषविषय: सावध यत्रास्ति प्रतिषेधः । रागादिविकुट नसहं ध्यानादि चेष कषशद्धः ।।७६२॥ यथा मनोवचःकायैः परस्य पीडा दृढ न कर्त्तव्या। ध्यातव्यं च सदा रागादिविपक्षजालं तु ।।६६३।। स्थलो न सर्व विषयः सावध यत्र भवति प्रतिषेधः । रागादिविकुटनसहं न च ध्यानाद्यपि तदशुद्धः ॥७६४॥ इनसे जो शुद्ध नहीं है अथवा जो भलीप्रकार परपदार्थों से निवृत्त नहीं है वैसा धर्म नियम से फल में धोखा देता है। जो उत्तम पुरुषार्थ (मोक्ष) है इससे वंचित हआ इस संसार में समस्त कल्याणों से वंचित होता है, इसमें कोई सन्देह नहीं। मोक्षपुरुषार्थ से वंचित न हुआ सब कल्याणों से वंचित नहीं होता। अत: विद्वानों को अतिनिपुण दृष्टि से भलीभांति परीक्षा करनी चाहिए। सम्पूर्ण विषय सूक्ष्म है। सावद्य (पापयुक्त) पदार्थों का जो निषेध है वह रागादि को नष्ट करने में समर्थ है । यह ध्यानादि की कसौटी पर शुद्ध होता है । मन, वचन और काय से दढ़तापूर्वक दूसरे को पीड़ा नहीं पहुँचानी चाहिए और रागादि से युक्त विपक्षियों का सदा ध्यान रहना चाहिए । जहाँ पर सावद्य का निषेध होता है वह सब विषय स्थूल नहीं है, वह रागादि को नष्ट १. बुद्धोए-हे. ज्ञा For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001882
Book TitleSamraicch Kaha Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1996
Total Pages450
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size11 MB
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