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________________ ७२० [समराइच्चकहा जय भवियकमलदिणयर जप असुरनरामरोसपणिवइय । जय तिहुयचिंतामणि जय जीवपयासियसुहम्म ॥ ७७७॥ जय संसारुत्तारय जय जिग गय रागरोसरयनिवह। जय सयलजीववच्छल जय मणिवइ परमनीसंग ॥७७॥ जय रागसोगवज्जिय जय जय नीसेसबंधणविमुक्क । जय भयवं अपुणब्भव जय निरुवमसोखसंपत्त ॥७७६॥ जय गणरहिय, महागुण जय परमाण जय गुरु अणंत। जय जय नाह सयंभव जय सहमनिरंजण मणीस ७८०।। इय थोऊण सहरिसं जिणयंदपरमभत्तिसंजत्तो। गणहरपमुहे य तओ नमिऊण साहुणो सत्वे ॥७८१॥ तियसाईए य तहि ननिऊण जहारिहे सए ठाणे । उवविट्ठो भुवणगुरुं नमिऊण पुणो सपरिवारो॥७८२॥ जय भविकमलदिनकर जय असुरनरामरेशप्रणिपतित । जय त्रिभुवनचिन्तामणे जय जीवप्रकाशितसुधर्म ॥७७७।। जय संसारोत्तारक जय जिन गत रागरोषरजोनिवह। जय सकलजीववत्सल जय मुनिपते परम निःसङ्ग ।।७७८।। जय रागशोकवजित जय जय निःशेष बन्धनविमुक्त । जय भगवन् अपुनर्भव जय निरुपमसौख्यसम्प्राप्त ।। ७७६ ।। जय गुणरहित महागुण जय परम णो जय गुरो अनन्त । जय जय नाथ स्वयम्भूः जय सूक्ष्म निरञ्जन मुनीश ॥७८०॥ इति स्तुत्वा सहर्षं जिनचन्द्रपरमभक्तिसंयुक्तः । गणधरप्रमुखांश्च ततो नत्वा साधून सर्वान् ॥७८१॥ त्रिदशादिकांश्च तत्र नत्वा यथा स्वके स्थाने । उपविष्टो भुवनगुरूं नत्वा पुनः सपरिवारः ।।७८२॥ नरेन्द्र और देवेन्द्र द्वारा नमस्कृत (आपकी) जय हो, तीनों लोकों के चिन्तामणिस्वरूप (आपको) जय हो, जीवों के लिए सधर्म का प्रकाश करनेवाले (आपकी) जय हो, संसार से पार लगानेवाले (आपकी) जय हो, राग और क्रोधरूपी रजसमूह से मुक्त जिन (आकी) जय हो, समस्त प्राणियों के प्रति स्नेह करनेवाले (आपकी) जय हो, परम निरासक्त मुनिपति (आपकी) जय हो, राग-शोक से रहित (आपकी) जय हो, हे समस्त बन्धनों से मुक्त (आपकी) जय हो, पुनर्जन्म से रहित (आपकी ) जय हो, अनुपम सुख को प्राप्त (आपकी) जय हो, गुण रहित होते हुए भी महागुणवाले (आपकी) जय हो, हे परमाणु (आपकी) जय हो, हे अनन्त (आपकी) जय हो, है. स्वयम्भूनाथ जय हो, जय हो, हे सूक्ष्मनिरंजन मुनीश्वर (आपकी) जय हो'- इस प्रकार हर्षसहित परमभक्ति से युक्त हो जिनचन्द्र को नमस्कार कर, अनन्तर गणधर प्रमुख सभी साधुओं को और देवतादि को नमस्कार कर, सपरिवार पुनः भुवनगुरु को नमस्कार कर मैं अपने स्थान पर बैठ गया ।।।७४१.७८२।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001882
Book TitleSamraicch Kaha Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1996
Total Pages450
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size11 MB
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