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________________ अठमो भवो] ७१६ तररवप्फण्णदिसं दिट्ठो नयरीउ निग्गओ नवरं। पाणजुग्गरहवरगएहि राईहि परियरिओ ॥७७१॥ थेवमिह भूमिभायं तुरियं गंतण करिवराउ अहं। ओइण्णो तियसकयं दळूण महासमोसरणं ॥७७२।। हरिसवसपुलइयंगो तत्थ पविठ्ठो य परियणसमेओ। दारेण उत्तरेणं दिट्ठो य जिणो जयक्खाओ ॥७७३।। दण य जिणयंदं हरिसवसुल्लसियबहलरोमंचो। धरणिनिमिउत्तमंगो इय नाहं थुणिउमाढतो॥७७४॥ जय तियणेक्कमंगल जय नरवर लच्छिवल्लह जिणिद । जय तवसिरिसंसेविय जय दुज्जयनिज्जियाणंग ॥७७५॥ जय घोरजियपरोसह जब लडहभयंगसुंदरीनमिय । जय सयलमुणियतिहुयण जय सुरकयसुहसमोसरण ॥७७६॥ तूर्यरवापूर्णदिग् दष्टो नगरीतो निर्गतो नवरम्। जम्पानयुग्यरथवरगतै राजभिः परिकरितः ॥७७१।। स्तोकमिह भूमिभागं त्वरितं गत्वा करिवरादहम् । अवतीर्णस्त्रिदशकृतं दृष्ट्वा महासमवसरणम् ॥७७२॥ हर्षवशपुलकिताङ्गस्तत्र प्रविष्टश्च परिजनसमेतः । द्वारेणोत्तरेण दृष्टश्च जिनो जगत्ख्यातः ।।७७३॥ दृष्ट्वा च जिनचन्द्रं हर्षवशोल्लसितबहलरोमाञ्चः । धरणीन्यस्तोत्तमाङ्ग इति नाथं स्तोतुमारब्धः ।।७७४॥ जय त्रिभुवनैकमङ्गल जय नरवर लक्ष्मीवल्लभ जिनेन्द्र। जय तप:श्रीसंसेवित जय दुर्जयनिजितानङ्ग ॥७७५।। जय घोरजितपरिषह जय लटभ (सुन्दर) भुजङ्गसुन्दरीनत । जय सकलज्ञातत्रिभुवन जय सुरकृतशुभसमवसरण ॥७७६।। पर सवार हुए राजाओं से घिरा हुआ नगर से निकला। यह भूमि थोड़ी है अत: देवों द्वारा बनाये हुए विशाल समवसरण को देखकर हाथी से शीघ्र ही नीचे उतरा और हर्षवश पुलकित अंगोंवाला होकर परिजनों के साथ वहाँ उत्तरद्वार से प्रविष्ट हुआ और संसार में प्रसिद्ध जिनेन्द्रदेव के दर्शन किये। जिनेन्द्र को देखकर हर्षवश जिसे अत्यधिक रोमांच हो आया है, ऐसा मैं पथ्वी पर मस्तक रख स्वामी की इस प्रकार स्तति करने लगाहे तीनों भवनों के अद्वितीय मंगल (आपकी) जय हो, हे लक्ष्मीपति नरश्रेष्ठ जिनेन्द्र ! (आपकी) जय हो, हे तपरूप लक्ष्मी से सेवित (आपकी) जय हो, हे दुर्जेय काम को जीतनेवाले (आपकी) जय हो, घोर परीषहों को जीतनेवाले ! (आपकी) जय हो, सुन्दर नागकन्या द्वारा नत (आपकी) जय हो. देवों द्वारा । द्वारा (जिसके लिए) शुभ समवसरण की रचना की गयी है (ऐसे आपकी) जय हो । हे भव्यकमलों के लिए सूर्य (आपकी) जय हो, असुरेन्द्र, For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001882
Book TitleSamraicch Kaha Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1996
Total Pages450
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size11 MB
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