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________________ १६६ [ समराइच्चकहा ___ अइक्कतेसु कइवयदिणेसु महया बलसमुदएणं पहाणरिद्धीए संगया सहियाहि अहिटिया जणणीए अओज्झानयरिमेव विवाहनिमित्तं पेसिया रयणवइ ति। पत्ता यमासमेत्तेणं कालेणं । निवेइया महारायमेत्तीबलस्स। परितुट्ठो एसो। कारावियमणण बंधणमोयणाइयं करणिज्जं । कया उचियपडिवत्ती । गणाविओ वारिज्जदियहो। समाइट्ठा पउरमहंतया, जहा 'कुमारविवाहाणुरूवं सध्वं करेह' ति। कयं च हिं पुवकम्मनिव्वत्तियं चेव सव्वं । समारद्वाओ हदभवणसोहाओ, दवावियं पाउलाण दविणजायं, भंडारपत्तयं वाइऊण कड्ढियाइं पहाणाहरणाई, निरूवियं देवंगाइचेलं, सज्जाविया पहाणवेयंडा, भूसावियाओ आसमंदुराओ, कड्ढाविया धयमालोवसोहिया रहा, दवावियं नयरचच्चरेषु तंबोलपडलाइयं । तओ पसत्थे तिहिकरणमहत्तजोए पसाहिओ वरनेवच्छणं सुणेतो गेयमंगलसई पेच्छंतो पहट्टपरियणं नमंतो गुरुदेवे थुव्वंतो बंदिलोएण पहाणसंवच्छरियवयणओ समारूढो धवलकरिवरं कुमारो। ठिआ य से मग्गओ विसालबुद्धिप्पमुहा वयंसया । तओ वज्जतेणं मंगलतरेणं पणन्चमाणाहि वारविलयाहि रहवराइगयरायलोयपरियरिओ अहिणंदिज्जमाणो अतिक्रान्तेषु कतिपयदिनेषु महता बलसमुदायेन प्रधान ऋद्धया सङ्गता सखीभिरधिष्ठिता जनन्या अयोध्यानगरीमेव विवाहनिमित्तं प्रेषिता रत्नवतीति । प्राप्ता च मासमात्रेण कालेन । निवेदिता महाराजमंत्रीबलस्य । परितुष्ट एषः । कारितमनेन बन्धनमोचनादिक करणीयम् । कृतोचितप्रतिपत्तिः। गणितो विवाहदिवसः। समादिष्टाः पौरमहान्तः, 'यथा कुमारविवाहानुरूपं सर्वं कुरुत' इति । कृतं च तैः पूर्वकर्म निर्वतितमेव सर्वम्। समारब्धा हट्टभवनशोभाः, दापितं याचकानां द्रविण जातम्, भाण्डागारपत्रं वाचयित्वा कृष्टानि प्रधानाभरणानि, निरूपितं देवाङ्गादिचेलम्, सज्जिताः प्रधानहस्तिनः, भूषिता अश्वमन्दुराः कर्षिता ध्वनमालोपशोभिता रथाः, दापितं नगरचत्वरेषु ताम्बूलपटलादिकम् । ततः प्रशस्ततिथिक रणमुहूर्तयोगे प्रसाधितो (अलंकृतो) वरनेपथ्येन शृण्वन् गेयमङ्गलशब्दं प्रेक्षमाण: प्रहृष्टपरिजनं नमन गुरुदेवान स्तूयमानो बन्दिलोकेन प्रधानसांवत्सरिकवचनतः समारूढो धवलकरिवरं कुमारः। स्थिताश्च तस्य मार्गतो (पृष्ठतः) विशालबुद्धिप्रमुखा वयस्याः। ततो वाद्यमानेन मङ्गलतूर्येण प्रनत्यन्तीभिरिवनिताभी रथवरादिगत कुछ दिन बीत जाने पर बड़ी सेना के साथ प्रधानऋद्धि से युक्त होकर, सखियों के साथ, माता से अधिष्ठित होकर रत्नवती को विवाह के लिए अयोध्या ही भेजा गया। एक मास में आ गयी। महाराज मंत्रीबल से निवेदन किया गया । यह (मैत्रीबल) सन्तुष्ट हुआ। इसने बन्दियों को छोड़ना आदि योग्य कार्य किये । उचित जानकारी प्राप्त की। विवाह का दिन गिना । नगर के बड़े लोगों को आदेश दिया कि कुमार के विवाह के अनुरूप सब करो। उन्होंने पहले के सभी कार्यों को पूर्ण किया। बाजार के भवनों की शोभा आरम्भ हई। याचकों को धन दिलाया. गरी के पत्र बाँचकर प्रधान आभरणों को निकाला, देवांगादि वस्त्रों को देखा, प्रधान हाथी सजाये गये, घुड़शालाएँ भूषित की गयीं, ध्वज और माला से शोभत रथ निकाले गये। नगर के चौराहों पर पान आदि दिलाये गये । अनन्तर प्रधान ज्योतिषी के वचनानुसार उत्तम तिथि, करण और मुहूर्त के योग में कुमार सफेद श्रेष्ठ हाथी पर आरूढ़ हुआ । उस समय वह उत्तम पोशाक से अलंकृत था, गाने योग्य मंगल शब्द सुन रहा था, हर्षित परिजनों को देख रहा था, माता-पिता और देवों को नमस्कार कर रहा था। बन्दीजन उसकी स्तुति कर रहे थे । उसके पीछे विशालबुद्धि प्रमुख मित्र बैठे थे । अनन्तर वह रत्नवती के जनवासे में पहुंचा। उस समय मंगल व व बजाये जा रहे थे, पागमाएँ नत्य कर रही थीं। मन पथ पर बैठे हुए राजाओं से बह श्रिा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001882
Book TitleSamraicch Kaha Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1996
Total Pages450
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size11 MB
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