SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 236
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६८६ [समराइच्चकहा कमारसमीवं । दिवा चित्तवट्टिया। 'देव, किमेयं ति जंपियमणेहि । ईसि हसिऊण भणियं कुमारणतुम्भं वयपडिच्छंदयालिहणं ति । तेहि भणियं-देव, महापसाओ ति। तओ घेतूण निरूविया चित्तवट्टिया। विम्हिया एए। वाचिया गाहा। चितियं च हि-धन्ना खु सा रायधूया, जा कुमारणावि एवं बह मन्निज्जइ । अहवा किमेत्थ अच्छरियं, विसओ खु सा एवंविहाए बहमाणणाए। ता इमं एत्थ पत्तयालं, जं सिग्यमेव एवं देवीए निवेइज्जइ ति चितिऊण भणियं चित्तमइणा-देव, अउम्वो एस पडिच्छंदओ। अहो इयमेत्थ अच्छरियं, जमदि8 पि नाम एवमाराहिज्जइ! भसणेण भणियं - देव, एरिसा चेव सा रायधूया, न किचि अन्नारिसं। धन्ना य सा, जा देवेण एवं बहु मन्निज्जइ। एत्यंतरम्मि पविट्ठो पडिहारो । भणियं च ण - कुमार, समागओ देवसंतिओ विस्सभूई नाम गंधविओ कुमारदसणसुहमणुहविउमिच्छ।। कुमारेण भणियं- 'पविसउ त्ति। गओ पडिहारो। पविटो विस्सभूई। पणमिऊण कुमारं भणियं च जेण-देवो आणवेइ। 'अस्थि अम्हाणं पत्थुए गंधववियारे सरे विन्भमो त्ति; तमागंतूणमवणेउ कुमारो'। तओ ईसि विहसिऊण जंपियं कुमारण। कुमारसमीपम् । दृष्टा चित्रपट्टिका। ‘देव ! किमेतद्' इति जल्पितमाभ्याम् । ईषद् हसित्वा भणितं कुमारेण-युवयोवृतप्रतिच्छन्दालेखनमिति । तैर्भणितम्-देव ! महाप्रसाद इति । ततो गृहीत्वा निरूपिता चित्रपट्टिका । विस्मितावेतो। वाचिता गाथा । चिन्तितं च ताभ्याम् । धन्या खलु सा राजदुहिता, या कुमारेणप्येवं बहु मन्यते । अथवा किमत्राश्चर्यम्, विषयः खलु सा एवंविधबहुमाननायाः । तत इदमत्र प्राप्तकालम्, यच्छीघ्रमेवैतद् देव्यै निवेद्यते इति चिन्तयित्वा भणितं चित्रमतिना-देव ! अपूर्व एष प्रतिच्छन्दकः । अहो इदमत्राश्चर्यम्. यददृष्टमपि नाम एवमाराध्यते । भूषणेन भणितम-देव ! ईदृश्येव सा राजदुहिता, न किञ्चिदन्यादृशम् । धन्या च सा, या देवेनैवं बहु मन्यते। अत्रान्तरे प्रविष्टः प्रतीहारः । भणितं च तेन- कमार ! समागतो देवसत्को विश्वभूतिर्नाम गान्धर्विक: कुमारदर्शनसूखमनुभवितुमिच्छति । कुमारेण भणितम्-'प्रविशतु' इति । गतः प्रतीहारः । प्रविष्टो विश्वभूतिः। प्रणम्य कुमारं भणितं च तेन-'देव आज्ञापयति, अस्त्यस्माकं प्रस्तुते गान्धर्वविचारे स्वरे विभ्रम इति, तमागत्यापनयतु कुमारः। तत ईषद् विहस्य जल्पितं कुमारेण - अहो कुमार के पास प्रविष्ट हुए। दोनों ने चित्रपट्टिका को देखा। 'महाराज ! यह क्या है ?' ऐसा उन दोनों ने कहा । कुछ मुस्कराकर कुमार ने कहा-'आप दोनों के बनाये हुए चित्र के समान चित्र है।' उन्होंने कहा'महाराज ! आपकी बड़ी कृपा।' अनन्तर लेकर चित्रपट्टिका देखी। ये दोनों विस्मित हुए । गाथा बांची । उन दोनों ने सोचा -वह राजपुत्री धन्य है, जिसे कुमार भी इस प्रकार सम्मान देते हैं । अथवा इसमें आश्चर्य क्या है, वह इस प्रकार के सम्मान की विषय है। तो अब समय आ गया है कि शीघ्र ही इसे महारानी से निवेदन करें। ऐसा सोचकर चित्रमति ने कहा ----'देव ! यह अपूर्व प्रतिलिपि है। ओह ! यह बड़ा आश्चर्य है कि न देखे हुए की भी इस प्रकार आराधना हो रही है ।' भूषण ने कहा - 'महाराज ! वह राजपुत्री ऐसी ही है, किसी और तरह की नहीं। वह धन्य हैं, जिन्हें महाराज भी इस प्रकार सम्मान देते हैं ?' इसी बीच द्वारपाल प्रविष्ट हुआ। उसने कहा-'कुमार ! महाराज का विश्वभूति नाम का गायक आया हुआ है । कुमार के दर्शनसुख का अनुभव करने की इच्छा कर रहा है।' कुमार ने कहा-'प्रवेश करे।' द्वारपाल चला गया। विश्वभूति ने प्रवेश किया और कुमार को प्रणाम कर बोला-'महाराज आज्ञा देते हैं कि संगीत के विषय में हम लोगों को स्वर का भ्रम है, उसे कुमार आकर दूर करें।' अनन्तर कुछ हँसकर कुमार ने कहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001882
Book TitleSamraicch Kaha Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1996
Total Pages450
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy