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[समराइचकहा सिग्घमेवोवलहिऊग भणियं कुमारेणं-'नहंगणाभोयं'। चित्तमइणा भणियं-अहो देवस्स लहणवेगो । कुमारेण भणियं-पढसु किपि अन्नं ति । विसालबुद्धिणा पढियं
कि होइ रहस्स वरं ? बुद्धिपसाएण को जणो जियइ?
किं च कुणंतो वाला नेउरसदं पयासेइ ? ॥६७५॥ ईसि विहसिऊण भणियं कुमारेण -'चकमंतो' । 'अहो अइसनो' ति जंपियं भूसणेण। भणियं च ण-देव, मए वि किंचि पसिणोत्तरं चितियमासि, तं सुणाउ देवो। कुमारेण भणियं'पढसुत्ति। पढियं भूसणेण
कि पियह ? किं च गेण्हह पढमं कमलस्स ? देह कि रिवगो ?
नववहरमियं भण कि ? उवहसरं केरिसं वक्कं ? ॥६७६॥ दमइमही (?) का दिज्जइ परलोए ? का दड्ढा वाणरेण? के जाइ वहू ? अमियमहणम्मि यति ? शोघ्रमेवोपलभ्य भणितं कुमारेण-"नहंगणाभोय"। नखम्, गणाः, भोगम, (फणाम), नभोङ्गणाभोगम-नभोङ्गणवस्तारम् । चित्रमतिना भणितम्-अहो ! देवस्य लभनवेगः (लब्धिवेगः) । कमारेण भणितम्-पठ किमप्यन्यदिति । विशालबुद्धिना पठितम् --
___ किं भवति रथस्य वरं, बुद्धिप्रसादेन को जनो जीवति ।
किं च कुर्वती बाला नपरशब्दं प्रकाशयति ।। ६७५ ।। ईषद् विहस्य भणितं कुमारेण- "चक्कमंती"। (चक्रम्, मन्त्री, चङ क्रममाणा) 'अहो अतिशयः' इति जल्पितं भूषणेन । भणितं च तेन-देव ! मयाऽपि किञ्चित् प्रश्नोत्तरं चिन्तितमासोत, तच्छ णोतु देवः । कुमारेण भणितं –'पठ' इति । पठितं भूषणेन
किं पिबत, किं च गृलोत प्रथमं कमलस्य दत्त किं रिपोः । ___ नववधूरतं भण किं, उपधास्वरं कीदृशं वक्रम् ।। ६७६ ।।
दमइमही (?) का दीयते परलोके ? का दग्धा वानरेण ? कं याति वधूः ? अमृतमथने नष्टा: चन्द्रमा किरणों से किसे धवल बनाता है ?' शीघ्र ही कुमार ने ग्रहण कर कहा - 'नहंगणाभोयं' अर्थात् नख, गण, भोग (फग) और आकाश रूपी आँगन के विस्तार को। अर्थात स्त्रियाँ नखक्षत करती हैं, शिव को उनके गण नमस्कार करते हैं, भोगी भोग करते हैं अथवा साँ। फन फैलाते हैं तथा चन्द्रमा अपनी किरणों से आकाशरूपी आँगन के विस्तार को धवल बनाता है।' चित्रमति ने कहा--'कुमार की प्राप्ति (उत्तर ढूंढने) का वेग आश्चर्ययुक्त है !' कुमार ने कहा – 'अन्य कुछ पढ़ो।' विशालबुद्धि ने पढ़ा
'रथ में कौन श्रेष्ठ होता है ? बुद्धि से प्राप्त कृपा के द्वारा कौन मनुष्य जीवित रहता है और बाला क्या करती हुई नूपुर के शब्द प्रकट करती है ?' ॥६७५॥
कुछ मुस्कुराकर कुमार ने कहा-'चक्कमंती'-चक्र, मन्त्री और गमन करती हुई। अर्थात् रथ में श्रेष्ठ चक्र होता है, बुद्धि से प्राप्त कृपा के द्वारा मन्त्री जीवित रहता है और बाला गमन करती हुई नूपुर के शब्द को प्रकट करती है।' 'ओह ! अतिशय है'-ऐसा भूषण ने कहा और वह बोला-'महाराज! मैंने भी कुछ प्रश्नोत्तर सोचे थे, उन्हें महाराज सुनिए।' कुमार ने कहा- 'पढ़ो' । भूषण ने पढ़ा
_ 'क्या पिया जाता है ? कमल का पहले क्या पकड़ा जाता है ? शत्रु को क्या दिया जाता है ? नव वधू में रत कौन है ? कहो, उपचा स्वर वाला वाक्य कैसा होता है?' ॥६७६॥
'दूसरे लोगों को कौन दी जाती है ? वानर ने किसे जलाया ? वधू कहाँ जाती है ? अमृतमन्थन के समय नष्ट
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