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[समराइच्चकहा
देवं गुणाण निलयं पणईयणवच्छलं च मुणिऊण । ता अम्हे कयउण्णा जेहि तुमं अज्ज दिट्ठो सि ॥६४६॥ सयलपुहईए नाहो तं नरवर तहवि भणिमो एवं । अम्हाण तुमं नाहो निब्भरभत्तीपहावेणं ॥६५०॥ ता देज्जह आणत्ति चित्तकलाए सगुणलवं अम्हे । जाणामो परमेसर इय भणिउं लज्जिया जाया ॥६५१॥ अह तं दळूण पडं पीइभरिज्जंतलोयणजएण। भणियं गुणचंदेणं अहो कलालवगुणो तुभं ॥६५२॥ जइ एस कलाए लवो ता संपुण्णा उ केरिसो होइ। सुंदरअसंभवो च्चिय अओ वरं चित्तयम्मस्स ॥६५३॥ अम्हेहि अस्टिउव्वो अन्नेहि वि नणमेत्थ लोएहि । एवंविहो सुरूवो रेहानासो न दिट्ठो त्ति ॥६५४॥ जइ विय रेहानासो पत्तेयं होइ सुंदरो कहवि । तहवि समुदायसोहा न एरिसी होइ अन्नस्स ॥६५५॥ देवं गुणानां निलयं प्रणयिजनवत्सलं च ज्ञात्वा । तत आवां कृतपुण्यो याभ्यां त्वमद्य दृष्टोऽसि ॥ ६४६ ।। सकलपृथिव्या नायस्त्वं नरवर ! तथापि भणाव एवम् । आवयोस्त्वं नाथो निर्भरभक्तिप्रभावेण । ६५० ।। ततो दत्ताज्ञप्ति चित्रकलायां स्वगुणलवमावाम् । जानीवः परमेश्वर ! इति भणित्वा लज्जिती जातौ ।। ६५१ ।। अथ तं दृष्ट्वा पटं प्रीति भ्रयमाणलोचनयुगेन। भणितं गुण चन्द्रेण अहो कलालवगुणो युवयोः ।। ६५२ ।। यद्येष कलाया लवस्ततः सम्पूर्णा तु कीदृशी भवति । सौन्दर्यासम्भव एव अतः परं चित्रकर्मणः ॥ ६५३ ।। अस्माभिरदृष्टपूर्वोऽन्यैरपि नूनमत्र लोकैः । एवंविधः सुरूपो रेख न्यासो न दृष्ट इति ।। ६५४ ॥ यद्यपि च रेखान्यास: प्रत्येकमपि सुन्दरः कथमपि। तथापि समुदायशोभा नेदशी भवत्यन्यस्य ।। ६५५ ।।
महाराज को गणों का भवन और याचक जनों का प्रेमी जानकर हम दोनों ने बड़े पूण्य से आपको आज देखा है । हे न रथेष्ट! अप समस्त पथ्वी के नाथ हैं तयापि इस प्रकार कहते हैं कि अत्यधिक भक्ति के प्रभाव से हम दोनों के आप नाथ हैं । अतः हे परमेश्वर, आज्ञा दो। हम दोनों के पास चित्रकला का लेश है' ऐसा कहकर दोनों नम्र हो गये। अनन्तर उस वस्त्र को देख कर प्रीति से भरे हए नेत्रवले गगचन्द्र ने कहा-'ओह ! आप दोनों के पास कला-गुण का लेश (बहुत थोड़ी मात्रा) है । यदि यह कला का लेश है तो सम्पूर्ण कैसा होता है ? इससे उत्कृष्ट चित्रकर्म का सौन्दर्य असम्भव है। हम लोगों ने और दसरों ने भी निश्चित रूप से इस लोक में इस प्रकार के अच्छे रूपदाला रेखांकन नहीं देखा है। यद्यपि प्रत्येक का रेखांकन किसी प्रकार (किसी विशेष गुण की अपेक्षा) सुन्दर होता है तथापि दूसरे चित्रकारों के चित्र की सम्पूर्ण रूप से शोभा इस प्रकार नहीं होती
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