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________________ अट्ठमो भवो वक्खायं जं भणियं सेणविसेणा उ वित्तियसूयति । गुणचंदवाणमंतर तो एयं पवक्खामि ॥ ६४७॥ अस्थि व जम्बुद्दीवे दीवे भारहे वासे महामहल्लुत्तुंगभवणसिह रुप्पं कनिरुद्धरविरहमग्गा देव विहारारामसंगया निच्चुस्सवाणंदपमुइय महाजणा निवासो तिहुयणसिरीए निदरिसणं देवनयरीए विस्सकम्मविणिम्मिया अओज्झा नाम नयरी। जीए उप्पत्ती विव लायण्णस्स आगरो विव विलासाणं कोसल्लपगरिसो विव पयावइस्स जम्मभूमी विव विम्हयाणं विसुद्धसीलसमायारो इत्थिया । जीए गुणक्खवाई अच्चुयारचरिओ निवासो परमलच्छोए पियंवओ पणइवग्गस्स संपाओ समीहिया पुरिसवग्गो त्ति । तीए य अइसइयपुव्वपत्थिवचरिओ पयावसरिसपसायवसीकयसत्तू, रायसिए विय अविउत्तो कित्तीए, नीईए विय अविरहिओ दयाए, अच्चंतपयाहियपीई व्याख्यातं यद् भणितं सेनविषेणी पितृव्यसुताविति । गुणचन्द्रवानव्यन्तरौ इत एतत् प्रवक्ष्यामि ||६४७॥ अस्तीहैव जम्बूद्वीपे द्वीपे भारते वर्षे महामहोत्तुङ्गभवन शिखरोत्पङ्क निरुद्ध र विरथमार्गा देवकुलविहारारामसङ्गता नित्योत्सवानन्दप्रमुदितमहाजना निवासस्त्रिभुवनश्रियो निदर्शनं देवनगर्या विश्वकर्मविनिर्मिता अयोध्या नाम नगरी । यस्यामुत्पत्तिरिव लावण्यस्य आकर इव विलासानां कौशल्यप्रकर्ष इव प्रजापतेः जन्मभूमिरिव विस्मयानां विशुद्धशीलसमाचारः स्त्रीजनः । यस्यां च गुणैकान्तपक्षपाती अत्युदारचरितो निवासः परमलक्ष्म्याः प्रियंवदः प्रणयिवर्गस्य सम्पादकः सभीहितानां पुरुषवर्ग इति । तस्यां चातिशयितपूर्व पार्थिवचरितः प्रतापसदृशप्रसादवशीकृतसकलशत्रुः, राजश्रियेवावियुक्तः कर्त्या, नीत्येवाविरहितो दयया, अत्यन्तप्रजाहितप्रातिमैत्रीबलो नाम राजा । सेन और विषेण नामक चचेरे भाइयों के विषय में जो कहा गया, उसकी व्याख्या हो चुकी । अब गुणचन्द्र और बाणमन्तर के विषय में यहाँ से कहूँगा || ६४७ ॥ जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में अयोध्या नामक नगरी है। वहाँ के अत्यधिक ऊँचे भवनों के शिखरसमूह से सूर्य के रथ का मार्ग रुक जाता था । देवमन्दिर, विहार और उद्यानों से वह युक्त थी । नित्य होने वाले उत्सवों के आनन्द से वहाँ लोग बड़े प्रमुदित रहते थे । वह तीनों लोकों की लक्ष्मी का निवास थी (तथा) विश्वकर्मा द्वारा निर्मित देवनगरी का उदाहरण थी, जिसमें विशुद्ध शील और आचार वाली स्त्रियाँ थीं। वे माना सौन्दर्य की उद्गम .विलासों की खान, प्रजापति के कौशल का प्रकर्ष और विस्मयों की जन्मभूमि थीं। वहीं गुणों के प्रति असाधारण पक्षपाती, अत्यन्त उदारचरित वाला, परम लक्ष्मी का निवास, प्रिय बोलने वाला और याचकों की कामनाओं को पूर्ण करनेवाला पुरुषवर्ग था । उस नगरी में पूर्वराजाओं के चरित से भी अधिक उत्कृष्ट चरित्र वाला, प्रताप के समान कृपा से जिसने समस्त शत्रुओं को वश में किया था, राजलक्ष्मी के समान कीर्ति से युक्त, नीति के समान दया से युक्त, प्रजा के हित में अत्यन्त प्रीति रखनेवाला मैत्रीबल नामक राजा था । उसकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001882
Book TitleSamraicch Kaha Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1996
Total Pages450
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size11 MB
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