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सत्तमो भवो]
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राया। तत्थ सद्धडो नाम गाहावई होत्था, चंदाय से भारिया, सुओ य से सग्गो। पुवकयकम्मपरिणामओ दारिद्दाणि य एयाणि । अन्नया य मरणपज्जवसाणयाए जीवलोयस्स विवन्नो सद्धडो। कयं उद्धदेहियं । अइक्कंतो कोइ कालो। अजीवमाणा य चंदा उयरभरणनिमित्तं परगिहेसु कम्म करिउमाढता, सग्गो वि अडवोए सागिंधणाइयं आणे ति । अइक्कंतो कोइ कालो । अन्नया य आगमणवेलाए चेव सग्गस्स 'पासंडसेविगेहे जामाउओ आगओ ति। उययाणयणनिमित्तं हक्कारिया चंदा। 'पुत्तो मे भुक्खिओ आगमिस्सइ'त्ति ठविऊण सिक्कए भोयणं साणाइभएणं च बंधिऊण किढियादुवारं गया तत्थ एसा। थेववेलाए य समागओ सग्गो। विमुक्कं सागिंधणं। निरूविया जणणी। जाव नत्थि ति खुहापिवासाहिभूयत्तणेण कुविओ एसो। न निरूवियमणेण सिक्कयं । थेववेलाए य वूढे वि पाणिए वावडयाए सेटिमाणुसेहि न किंचि वि दिन्नं ति पडिवन्ना दीणयाए अवठ्ठद्धा महाविसाएणं विद्दाणचित्ता समागया चंदा। तं च तहा पेच्छिऊण कोहवसएणं जंपिय सग्गेणं । तहिं गया चेव सूलियाए भिन्ना तुम ति। वोसरिया वेला अम्हाणं छुहाभिभूयाणं । तीए वि तत्र सधडो नाम गृहपतिरभवत् । चन्द्रा च तस्य भार्या, सुतश्च तस्य स्वर्गः । पूर्वकृतकर्मपरिणामतो दरिद्राश्चैते। अन्यदा च मरणपर्यवसानतया जीवलोकस्य विपन्न: सधडः। कृतमौर्ध्वदेहिकम् । अतिक्रान्तः कोऽपि काल: । आजीवन्ती च चन्द्रा उदरभरणनिमित्तं परगृहेषु कर्म कर्तु मारब्धा, स्वर्गोऽप्यटव्या: शाकेन्धनादिकमानेतुमिति । अतिक्रान्तः कोऽपि कालः । अन्यदा चागमनवेलायामेव स्वर्गस्य पाषण्डश्रेष्ठिगृहे जामातृक आगत इति । उदकानयननिमित्तमाकारिता चन्द्रा। 'पुत्रो मे बुभुक्षित आगमिष्यति' इति स्थापयित्वा शिक्यके भोजनं श्वानादिभयेन च बद्ध्वा किटिकाद्वारं गता तत्रैषा । स्तोकवेलायां च समागतः स्वर्गः । विमुक्तं शाकेन्धनम् । निरूपिता जननी, यावन्नास्तीति क्षुत्पिपासाभिभूतत्वेन कुपित एषः । न निरूपितमनेन शिक्यम् । स्तोकवेलायां च व्यूढेऽपि पानी ये व्याप्ततया श्रेष्ठिमनुष्यन किञ्चिदपि दत्तमिति प्रतिपन्ना दीनतया अवष्टब्धा महाविषादेन विद्राणचित्ता समागता चन्द्रा। तां च तथा प्रेक्ष्य क्रोधवशगेन जल्पितं स्वर्गेण-तत्र गतैव शूलिक । भिन्ना त्वमिति। विस्मता वेलाऽस्माकं क्षदभिभूतानाम् । तयाऽपि कृपणभावेन
अजितवर्धन था ! वहाँ पर सद्धट नाम का गृहस्थ हुआ। उसकी पत्नी चन्द्रा और उसका पुत्र 'स्वर्ग' था । पूर्वकृत कर्म के परिणाम से ये दरिद्र थे। एक बार संसार का अन्त मरणरूप में होने के कारण सद्धट मर गया। पारलौकिक त्रिाएं कीं । कुछ समय बीत गया । पेट भरने के लिए आजीविकार्थ चन्द्रा ने दूसरों के घरों में काम करना आरम्भ किया और स्वर्ग ने भी जंगल से लकडी, इंधन आदि लाना प्रारम्भ किया। कुछ समय बीत गया। एक बार आते समय 'स्वर्ग' के 'पाखण्ड' नामक सेठ के घर जमाई आया। जल लाने के लिए चन्द्रा को बुलाया। 'मेरा पुत्र भूखा आयेगा' अतः सीके में भोजन रखकर कुत्ते आदि के भय से खिड़की के द्वार में बाँध दिया और यह पानी लाने के लिए चली गयी। थोड़ी देर में 'स्वर्ग' आया । लकड़ी, ईंधन को रखा । माता को देखा, वह नहीं थी, अत: भूख-प्यास से व्याकुल होकर वह कुपित हो गया। उसने सींका नहीं देखा। थोड़ी देर में, (चन्द्रा के) पानी लाने में लगी होने पर भी काम में लगे सेठ के मनुष्यों ने कुछ भी नहीं दिया अतः दीनता को प्राप्त होकर, मान विषाद से घिरकर मलिनचित्त वाली चन्द्रा वापस आयी। उसे वैसा देखकर क्रोधवश स्वर्ग ने कहा --- 'वहीं जाते ही तुम शूली से भिद गयी थी जो भूख से व्याकूल हमारा समय भूल गयी !' उसने भी असहाय
१. ईमद-पा. ज्ञा.। २. कहिया-हे. झा, । कोटिका खडकीति भाषायां ।
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