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________________ सत्तमो भवो] ६४१ अन्नोन्नावडणखणक्खणंतकरवालनिवहसंजणिओ। तडिनियरो व्व समंता विप्फुरिओ सिहिफुलिंगोहो ॥६३४॥ रणतूररवायण्णणदूरुद्धयघोलिरग्गघोरकरा। मेह व्व गलगलिता रसिसु वरमत्तमायंगा ।। ६३५॥ तिक्खखुरुप्पुक्खुडिया रहाण धुव्वतया चिरं नट्ठा । सरघणजालंतरिया धवलधया रायहंस व्व ॥६३६।। सुहडासिवियडदारियकुभयडा गरुयजलयनिवह व्व । वरिसिसु वरगइंदा जलं व मुत्ताफलुग्घायं ।। ६३७॥ निहयहयह त्थिपाइक्कचक्कवणविवरनिज्झरपलोट्टा। वरभडसीसुक्कत्तियसिरयसमुल्लसियसेवाला ॥६३८॥ मायंगकरफालणविसमसमुत्थल्लहल्लिरतरंगा। गयदंतावरवडिया लोलंतच्छलियडिण्डीरा ॥६३६॥ अन्योन्यापतनखणखणत्करवालनिवहसञ्जनितः । तडिन्निकर इव समन्ताद् विस्फुरितः शिखिस्फुलिङ्गौघः ।।६३४।। रणतूर्य रवाकर्णनदूरोद्धतभ्राम्यदग्रघोरकराः । मेघा इव गलुगुलन्तोऽरसिषुर्मत्तमातङ्गाः ॥६३५।। तीक्ष्णक्षरप्रोत्खण्डिता रथानां धूयमानाश्चिरं नष्टा । शरघनजालान्तरिता धवलध्वजा राजहंसा इव ॥६३६।। सुभटासिविकटदारितकुम्भतटा गुरुकजल दनिवहा इव । अवषिपुर्वरगजेन्द्रा जलमिव मुक्ताफलोद्घातम् ।। ६३७।। निहत यहस्तिपदातिचक्रवणविवरनिर्झरपर्यस्त।। वरभट शीर्षोत्कतितशिरोजसमुल्लसित शेवाला ।।६३८।। मातङ्गकरास्फालनविषमसमुच्छलच्चलत्तरङ्गा। गजदत्तावरपतिता लोलदुच्छलितडिण्डीरा ॥६३६।। एक दूसरे पर गिरायी हुई 'खन खन' करती तलवारों के समूह से उत्पन्न अग्नि की चिनगारियाँ चारों ओर विजली के समूह के समान चमक उठी । युद्ध के वाद्यों को सुनकर अपनी विकट संडों को ऊपर उठाकर घमाते हए मतवाले हाथी अत्यधिक शब्द करने वाले मेघों के समान दहाडने लगे। रथों की फहराती हई सफेद ध्वजाएँ पैने क्षुरप्र नामक वाणों से उखाड़ी जाती हुई, बाणरूपी मेघसमूह में छिपे हुए राजहंसों की तरह चिरकाल के लिए नष्ट हो गयीं। योद्धाओं की तलवारों से जिनका भयंकर कुम्भस्थल विदीर्ण कर दिया गया था, ऐसे उत्तम हाथी भारी मेघसमूह के द्वारा की गयी जलवृष्टि के समान मोतियों के समूह वी वर्षा करने लगे । मारे गये घोड़े, हाथी तथा पैदल सैनिक-समूह के घावों के छिद्रों से झरने बहने लगे। श्रेष्ठ योद्धाओं के सिरों के काटे गये बाल शैवाल की तरह प्रतीत होने लगे। हाथियों द्वारा सूड़ों के चलाने से भयंकर चंचल तरंग उछलने लगीं। श्रेष्ठ हाथीदांतों के गिरने से चंचल फेनपिराड़ उछलने लगे ॥६३४-६३६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001882
Book TitleSamraicch Kaha Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1996
Total Pages450
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size11 MB
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