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________________ सत्तमो भवो] ६३१ सूरुग्गमवेलाए धणियं अन्नोन्नबद्धवेराई। आवडियाइ सहरिसं परोप्परं दोन्नि वि बलाइं॥ ६२२॥ जायं च महासमरं सरनियरोत्थइय नहयलाभोयं । निसियासिपहरदारियपडतवरदरियपाइक्कं ॥६२३॥ तुरयारूढमहाभडसेल्लसमुभिन्नमत्तमायंगं । मायंगचलणचमढणभीयविसटतभीरुजणं ॥६२४॥ रहसारहिधणुपेसियखुरुप्पछिज्जंतछत्तधयनिवहं । निवहट्ठियनियसाहणसरहससम्मिलियनरणाहं ॥६२५।। एहि इओ कि इमिणा हक्कारिज्जंतलियभडनियरं । अन्नोन्नगंर्धाजघणमच्छरियपहावियगइंदं॥६२६॥ परितसुहडपुलइयरुहिरारु विसमच्चिरकबंधं । अन्नोन्नरहसपरिणयगइंदरचलित इंधं ॥६२७॥ सूरोद्गमवेलायां गाढमन्योन्यबद्धबैराणि । आपतितानि सहर्ष परस्परं द्वयोरपि बलानि ॥६२२॥ जातं च महासमरं शरनिक रोत्स्थगितनभस्तलाभोगम् । निशितासिप्रहारदारितपत दुरदप्तपदातिकम् ॥६२३॥ तुरगारूढमहाभट कुन्तसमुदभिन्नभत्तमातङ्गम् । मातङ्गचरणमर्दनभीतपतझोरुजनम् ॥६२४॥ रथसारथिधनुःप्रेषितक्षरप्र (बाणविशेष) छिद्यमानछत्रध्वजनिवहम् । निवहस्थितनिजसाधनसरभससम्मिलितनरनाथम् ॥६२५॥ एहि इतः किमनेन [इति] आकार्यमाण वलितभटनिकरम् । अन्योन्यगन्धघ्राणमत्सरितप्रधावितगजेन्द्रम् ॥६२६॥ परितुष्टसुभटपुलकितरुधिरारुणविषमनत्यत्कबन्धम् । अन्योन्य रभसपरिणतगजेन्द्रविगलद्भटचिह्नम् ॥६२७॥ सूर्योदय की वेला में एक दूसरे के प्रति गाढ़ वर में बंधी दोनों ओर की सेनाएँ हर्षित होती हुई आ गयीं और परस्पर महायुद्ध आरम्भ हो गया। उस समय आकाश का विस्तार बाणों से स्थगित हो गया, तीक्ष्ण तलवारों के प्रहार से विदीर्ण हुए श्रेष्ठ अभिमानी पैदल सिपाही गिरने लगे। घोड़े पर सवार महायोद्धाओं के कुन्तों (भालों) से मतवाले हाथी भिद गये। हाथियों के पैरों तले दबने से भयभीत हए डरपोक आदमी गिरने लगे। रथों के सारथियों के धनुषों से प्रेषित क्षुरप्र नामक बाणविशेषों से ध्वजाओं का समूह छिदने लगा। समूह में स्थित राजा अपनी सेना से शीघ्र मिलने लगा। इससे क्या, इधर आओ-इस प्रकार योद्धाओं का समूह मुड़कर (एक-दूसरे को) बुलाने लगा। एक दूसरे की गन्ध को सूंघने से मात्सर्ययुक्त हुए हाथी दौड़ने लगे। सन्तुष्ट हुए योद्धाओं के खून से लाल धड़ पुलकित हो विषम नृत्य करने लगे। हाथियों के एक दूसरे पर वेग से झपटने के कारण योद्धाभों के चिह्न नष्ट हो गये ॥६२२-६२७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001882
Book TitleSamraicch Kaha Part 2
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1996
Total Pages450
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size11 MB
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