________________
६३८
बिदियहम्मि घट्टो दोसु वि य बलेसु तह य संगामो । गया कया पसाया दोहि वि सुहडेहि भिच्चाणं ॥ ६१६ ॥ दाणं च बहुविष्पं दिन्नं दीणस्स अत्थिनिवहस्स । रणक्खिसंठियाणं तुरियं रयणी अइक्कंता ॥। ६१७ ।। ताव य विसालभयगलगलंतमय सलिलपसमियरयाई । पुल इयतरल तुरंगमगमण विसंवइयचंदाई' ॥ ६१८ ॥ पढमपट्ठियसा रहिरहरहसारूढपत्थिवसयाइं । निसियासितपट्टि समऊहविज्जो वियदिसाई' ॥ ६१६॥ धुवंतधवलधय वडचलिरबला ओलिजनियसंकाई । उद्दामसद्द बंदिणवंद्रसमुग्घुटुनामाई ॥ ६२० ॥ पपडपडहपडिरवभरिय दिसायक्क बहिरियजयाई । सामिपसायवसाइयपत्तिसमभिन्नपुलयाई ।। ६२१॥
Jain Education International
fatafat घोषितो द्वयोरपि च बलयोस्तथा च संग्रामः । गुरुकाः कृताः प्रसादा द्वयोरपि सुभटैर्भृत्यानाम् ।।६१६ ॥ दानं च बहुविकल्पं दत्तं दीनस्यार्थिनिवहस्य | रणदीक्षा संस्थितानां त्वरितं रजन्यतिक्रान्ता ॥ ६१७॥ तावच्च विशाल मदकलगलद्द्मदस लिल प्रशमितरजस्कानि । पुलकिततरलतुरङ्गमगमनविसंवादित चन्द्राणि ।। ६१८ ॥ प्रथमप्रतिष्ठितसारथिरथ रभसारूढपार्थिव शतानि । निशिता सिकुन्तपट्टिशमयूख विद्योतितदिशानि ॥६१६ ॥ धूयमानधवलध्वजपटचलद्वलाकालिजनितशङ्कानि । उद्दामशब्द बन्दिवन्द्रसमुद्घोषितनामानि ॥ ६२० ॥ पहतपटुपटहप्रति रवभृतदिक्चक्रवधिरितजगन्ति । स्वामिप्रसादप्रसादितपार्थिवसमुद्भिन्नपुलकानि ॥ ६२१॥
दूसरे दिन दोनों सेनाओं का संग्राम घोषित हुआ। दोनों ओर के सुभटों ने भृत्यों पर अत्यधिक कृपा की और दीन व्यक्तियों तथा याचकों को अनेक प्रकार का दान दिया । रणदीक्षा में स्थित हुए लोगों की शीघ्र ही रात्रि बीत गयी । विशाल मतवाले हाथियों के गण्डस्थलों से गिरते हुए मद के जल से धूलि शान्त हो गयी । पुलकित चंचल घोड़ों के गमन से चन्द्र निराश हो गया । जिन पर पहले से सारथी बैठे हुए थे ऐसे रथों पर वेग से सैकड़ों राजा बैठ गये । तीक्ष्ण तलवार, कुन्त और भालों की किरणों से दिशाएँ चमक उठी । फहराती हुईं सफेद ध्वजाओं के वस्त्र चलती हुई बगुलों की पंक्ति की शंका उत्पन्न कर रहे थे। बन्दिसमूह के उत्कट शब्दों से नामों की घोषणा हो रही थी । पीटे गये विशाल नगाड़े की प्रतिध्वनि से भरी हुई दिशाओं के कारण संसार बहरा हो रहा था । स्वामी की कृपा से प्रसन्न हुए राजाओं के रोमांच प्रकट हो रहा था ।। ६१६-६२१ ।।
१. चंहाईक । २. नहाई - क ।
[ समराइच्चकहा
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org