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सत्तमो भवो ]
भणियं च जाए- 'कतो तुम्भे' त्ति । मए भणियं - भयवइ, इओ चेव । एत्थंतरम्मि जंपियं मे सहीए
ras, एसा खुणसत्यवाहधूया गुणसिरी नाम । इमीए य विचित्तयाए कम्मपरिणामस्स विवाहसमणंतरमेव पंचत्तमुवगओ भत्ता । वेरग्गिया य एसा खवेद अत्ताणयं नियमोववासेहि । सुयं च जाए, जहा भयवई आगय त्ति । तओ भत्तिनिम्भरा अणुन्नविय जणणिजणए तुह चलणवंदणनिमितमागयति । गणिणीए भणियं - साहु कयं जमागया वेरग्गिया य । 'ईइसो एस संसारो, दुक्खभायणं चैव एत्थ पाणिणो ति । कहिओ मे धम्मो, परिणओ पुव्वपओएण। पडिवन्ना देसविरई । अइ क्तो कोइ कालो । तओ पंचत्तमुवगएसु जणणिजणएस जाया य मे चिंता । अलं गिहासमेणं, पवज्जामि समलिंगं । पुच्छिया य भायरो, नाणुमयमेएसि । भणियं च हि - एत्थेव ठिया जहासमीहियं कुणत्ति । तओ कारावियं जिणहरं, भरावियाओ पडिमाओ, फुल्लब लिगंधचंदनाइस पारो महावओ । कुरुगुरॅति भाइजायाओ । तओ मए चितियं - पेच्छामि ताव भाइचित्तं । कि माहिति । अन्नया जाममेत्ताए जामिणीए वासहरमुवगए षणवइम्मि आलोचिऊण नियडीए
भणितं च तया 'कुतो यूयम्' इति । मया भणितम्-भगवति ! इत एव । अत्रान्तरे जल्पितं मे सख्या - भगवति ! एषा खलु धनसार्थवाहदुहिता गुणश्रीर्नाम । अस्याश्च विचित्रतया कर्मपरिणामस्य विवाहसमनन्तरमेव पञ्चत्वमुपगतो भर्ता । वैराग्यिता चैषा क्षपयत्यात्मानं नियमोपवासः । श्रुतं चानया यथा भगवत्यागतेति । ततो भक्तिनिर्भरा अनुज्ञाय जननीजनको तव चरणवन्दननिमित्तमागतेति । गणिन्या भणितम् -- साधु कृतं यदागता वैराग्यिता च । ईदृश एष संसारः, दुःखभाजनमेवात्र प्राणिन इति । कथितो मे धर्मः, परिणतः पूर्वप्रयोगेण । प्रतिपन्ना देशविरतिः । अतिक्रन्तः कोऽपि कालः । ततः पञ्चत्वमुपगतयोर्जननीजनकयोर्जाता च मे चिन्ता । अलं गृहाश्रमेण, प्रपद्ये श्रमणलिङ्गम् । पृष्टौ च भ्रातरौ नानुमतमेतयोः । भणितं च ताभ्यां - अत्रैव स्थिता यथासनीहितं कुर्विति । ततः कारितं जिनगृहम्, भारिताः प्रतिमाः, पुष्पबलिगन्धचन्दनादिभिः प्रारब्धो महाव्ययः । कुरकुर येते भ्रातृजाये । ततो मया चिन्तितम् - प्रेक्षे तावदम् भ्रातृचित्तम, कि मर्मताभ्यामिति । अन्यदा याममात्रायां यामिन्यां वासगृहमुपगते धनपतो आलोच्य निकृत्या रति
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उन्होंने पूछा - 'तुम सब कहाँ से आये ?' मैंने कहा- 'भगवती ! यहीं से ।' इसी बीच मेरी सखी ने कहा'भगवती ! यह धन व्यापारी की गुणश्री नाम की पुत्री है। इसके कर्मपरिणाम की विचित्रता से विवाह के बाद ही पति की मृत्यु हो गयी। इसे वैराग्य हो गया। अपना समय नियम और उपवासों में व्यतीत करती है । इसने सुना कि भगवती आयी हैं तो भक्ति से भरकर माता-पिता से पूछकर चरणवन्दना के लिए आयी है ।' गणिनी ने कहा - 'ठीक किया जो चली आयी और वैराग्य धारण किया। यह संसार ऐसा ही है, इसमें प्राणी दुःखों के ही पात्र होते हैं ।' गणिनी ने मुझसे धर्म कहा, पूर्वाभ्यास के कारण समझ में आ गया। मैंने देशविरति प्राप्त की। कुछ समय बीता । माता-पिता की मृत्यु के बाद मुझे चिन्ता हुई गृहस्थाश्रम व्यर्थ है, मैं श्रमणलिंग धारण करती हूँ। दोनों भाइयों से पूछा- दोनों ने अनुमति नहीं दी। उन दोनों ने कहा- यहीं रहकर इष्टकार्य करो ।' अनन्तर मन्दिर बनवाया, जिनप्रतिमा की स्थापना करायी, पुष्प, गन्ध, चन्दनादि से पूजाकर महान् व्यय प्रारम्भ किया । दोनों भाभियों ने अव्यक्त शब्द किये । तब मैंने सोचा- भाई का चित्त देखूं, मुझे इन दोनों से क्या ? एक बार रात्रि का प्रहर मात्र बीतने पर जब धनपति शयनगृह में चला गया तो विचारकर रतिमन्दिर में प्रवेश
१. एरिसोक । २. से - ख । ३ तओ गिहासन्ने के । ४, कारावियाओ क ।
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