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सत्तमो भवो ]
जालंतरनितपरिष्कुरं तदी संतविविमणिकिरणं । मणिकिरणज्जलम उडाहि कणयपडिमाहि 'पज्जुतं ॥५६३ ॥ दिट्ठा य तेण तेहि' य नित्थिष्णभवण्णवा तहिं गणिणी । सिरिसfreeवसोहा गुणरयणविभूसिया सोम्मा ।। ५६४ ।। आसीणा समणोवासियाहि तह साहूणीहि परिकिष्णा । संपुष्णमुहमियंका निसि व्व नक्खत्तपंतीहि ॥ ५६५।। विच्छद सतिमिरा फुरंत बिबाहरारुणच्छाया । उज्झिताराहरणा रयणिवरामे व्व पुवदिसा || ५६६।।
धवलपडपायंगी तिव्वत बोलुग्गमुद्धमुहयंदा ! जलर हियतलिणजलहरपडलपिहिय व्व सरयनिसा ॥ ५६७ ।।
अहिनंदिया राणा भवई । विमुक्कं दुसुमवरिसं उग्गाहिओ धूवो । करयलकयंजलिउड
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जालान्तरगत परिस्फुरदृश्यमानविविधमणिकिरणम् ।
मणि किरणोज्ज्वलमुकुटाभिः कनकप्रतिमाभिः प्रयुक्तम् ॥ ५६३ ।। दृष्टा च तेन तैश्च निस्तीर्णभवार्णवा तत्र गणिनी । श्रीसदृश रूपशोभा गुणरत्नविभूषिता सौम्या | ५६४।। आसीना श्रमणोपासकाभिस्तथा साध्वीभिः परिकीर्णा । सम्पूर्ण मुखमृगाङ्का निशेव नक्षत्रपंक्तिभिः ।। ५६५।। विक्षिप्त रोषतिमिरा स्फुरद्बिम्बाधरारुणच्छाया । उज्झितताराभरणा रजनीविरामे इव पूर्वदिक् ।। ५६६ ।। धवलपप्रावृताङ्गी तीव्रतपोऽवरुग्ण (कृश ) मुग्धमुखचन्द्रा । जल रहिततलिन (कृश) जलवरपटलपिहितेव शरन्निशा ।। ५६७ ।। अभिनन्दिता राज्ञा भगवती विमुक्तं कसुमवर्षम् । उद्ग्राहितो धूपः । करतलकृताञ्जलिपुटं
घण्टियों के समूह के मध्य चमकते हुए रत्नों की किरणें दिखाई दे रही थीं, मणियों की किरणों से उज्ज्वल मुकुटों में स्वर्णप्रतिमाएँ लगायी गयी थीं। वहाँ पर राजा तथा अन्य लोगों ने संसाररूपी समुद्र को पार हुई गणिती देखी। लक्ष्मी के समान उसकी रूपशोभा थी, वह गुणरूपी रत्नों से विभूषित तथा सौम्य थी । साध्वियों, श्रमणों और उपासिकाओं से घिरी हुई वह विराजमान थी तथा सम्पूर्ण चन्द्रमा को धारण किये हुए नक्षत्रपति से युक्त रात्रि के समान प्रतीत हो रही थी। रोषरूपी अन्धकार का उसने त्याग कर दिया था । बिम्बाफल के समान उसके अबर से बाल कान्ति विकीर्ण हो रही थी । वह ताराओं रूपी आभरण का त्याग किये हुए रात्रि के अन्तवाली पूर्वदिशा के समान लग रही थी । सफेद वस्त्रों से वह अंगों को ढके हुए थी और तीव्र तप के कारण उसका मुग्ध मुखरूप चन्द्रमा कृश (दुर्बल) हो रहा था और वह जल से रहित
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( कृश) मेघसमूह से ढकी हुई शरत्कालीन रात्रि के समान लग रही थी ।।५६३-५६७।।
राजा ने भगवती का अभिनन्दन किया, फूलों की वर्षा की। धूप उठायी। हाथ जोड़कर पैरों में पड़
१. पज्जत । २. तहियं - क, ख । ३. निच्छुक ।
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