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चरिसंगहणिगाहाओ ]
गुणसे स्ववाओ सोहम्म- सणक्कुमार - बम्मेसुं । सुक्काऽऽणयाऽऽरणेसुं गेवेज्जाऽणुत्तरेसं च ॥ २७ ॥ इयरस्स उ उववाओ विज्जुकुमारेसु होइ नायव्वो । सेसो अणन्तरो उण रयणाईसुं जहाकमसो ॥ २८ ॥ सागरमेगं पंच य नव पण्णरसेव तह य अट्ठारा। बसंती तेत्तीसमेव पढमस्स देवेसु ॥ २६ ॥
देवेसु सड्ढपलियं' सागरतिय सत्त दस य सत्तरस । बावीस तेत्तीसं वीयस्स ठिई उ नरएसु ॥ ३० ॥
एवमेयाओ चरियसंगहगिगाहाओ । संपयं एयासि चेव गुरुवएसानुसारेणं वित्थरेण भावत्थो
हिज्ज -
१. सड्ढपलिअं ।
गुणसेनस्योपपादः सौधर्म सनत्कुमार- ब्रह्मषु । शुक्राऽऽरणेषु ग्रैवेयकाऽनुत्तरेषु च ॥ २७ ॥ इतरस्य चोपपादः विद्य ुत्कुमारेषु भवति ज्ञातव्यः । शेषोऽनन्तरः पुना रत्नादिषु यथाक्रम् ||२८||
सागरमेकं पञ्च च नव पञ्चदशैव तथा चाष्टादश । विंशतिः, त्रिंशत्, त्रयस्त्रिंशद् एव प्रथमस्य देवेषु ॥ २६ ॥ देवेसु सार्धपल्यम्, सागरत्रिकं सप्त दश च सप्तदश । द्वाविंशति त्रयस्त्रिशद् द्वितीयस्य स्थितिस्तु नरकेषु ॥ ३० ॥
एवमेताः चरितसंग्रहणीयगाथाः । सांप्रतमेतासां चैव गुरूपदेशानुसारेण विस्तरेण भावार्थ: कथ्यते-
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और उज्जयिनी नगरादि हैं ||२६|| गुणसेन की उत्पत्ति सौधर्म, सनत्कुमार, ब्रह्मलोक, शुक्र, आरण, ग्रैवेयक तथा अनुत्तरों में हुई । दूसरे की उत्पत्ति विद्युत्कुमारों में जानना चाहिए। शेष जन्म क्रमशः रत्नप्रभादि पृथवियों में हुए ।।२७-२८ ।। स्वर्ग लोक में जन्म पाने वाले प्रथम ( गुणसेन ) की आयु एक सागर, पाँच सागर, नौ सागर, पन्द्रह सागर, अठारह सागर, बीस सागर, तीस सागर तथा तैंतीस सागर हुई ||२६|| द्वितीय (अग्निशर्मा) की आयु देवयोनि में डेढ़ पल्य तथा नरकों में तीन सागर, सात सागर, दस सागर, सत्रह सागर, बाईस सागर तथा तैंतीस सागर हुई ||३०||
इस प्रकार चरित का संग्रह करने वाली गाथाएँ हैं। गुरु के उपदेश के अनुसार इन्हीं का विस्तार से भावार्थ कहा जाता है
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