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[ समराइच्चकहा तओ अहं पि इयाणि दिव्वमाणुसवत्युगयं धम्मकहं चेव कित्तइस्सामि। भणियं च अकयपरोवयारनिरएहिं उवलद्धपरमपयमग्गेहि, समतिणमणिमुत्तलोठ्ठकंचणेहिं सासयसिवसोक्खबद्धराएहिं धम्मसत्थयारेहि
धम्मेण कुलपसूई धम्मेण य दिव्वरूवसंपत्ती। धम्मेण धणपमिद्धी धम्मेण सुवित्थडा कित्ती ॥१२॥ धम्मो मंगलमउलं ओसहमउलं च सव्वदुक्खाणं ।। धम्मो वलमवि विउलं धम्मो ताणं च सरणं च ॥१३॥ कि जंपिएण बहुणा जं जं दोसइ समत्यजियलोए। इंदियमणाभिराम तं तं धम्मप्फलं सव्वं ॥१४॥ भीमम्मि मरणकाले मोत्तूग दुक्खसंविढत्तं पि।
अत्थं देहं सयगं धम्मो च्चिय होइ सुसहाओ ॥१५॥ ततोऽहमपि इदानी दिव्यमानुषवस्तुगतां धर्मकथामेव कीर्तयिष्यामि । भणितं च अकृतपरोपकारनिरतः उपलब्धपरमपदमार्गः समतृणमणिमुक्तालोष्टुकाञ्चनैः शाश्वतशिवसौख्यबद्धरागैर्धर्मशास्त्रकारैः
धर्मेण कुलप्रसूतिः धर्मेण च दिव्यरूपसंप्राप्तिः । धर्मेण धनसमृद्धिः, धर्मेण सुविस्तृता कीर्तिः ॥१२॥ धर्मो मङ्गलमतुलम् औषधमतुलं च सर्वदुखानाम् । धर्मो बलमपि विपुलं धर्मः त्राणं च शरणं च ॥१३॥ किं जल्पितेन बहुना यद् यद् दृश्यते समस्तजीवलोके । इन्द्रियमनोऽभिरामं तद् तद् धर्मफलं सर्वम् ।।१४॥ भीमे मरणकाले मुक्त्वा दुःखसमर्जितोऽपि । अर्थो देहः स्वजनो, धर्मश्चैव भवति सुसहायः ॥१५॥
उत्तम पुरुष स्वर्ग और निर्वाण-भूमि में आरोहण कराने वाली, ज्ञानीजनों के द्वारा प्रशंसनीय, समस्त कथाओं में सुन्दर, महापुरुषों के द्वारा सेवित धर्मकथा के प्रति अनुरागी होते हैं ।
__अतः मैं भी इस समय दिव्य-मानुष वस्तु से युक्त धर्मकथा को ही कहूँगा। बिना प्रयोजन उपकार करने वाले, परमपदरूप मार्ग को प्राप्त करने वाले; तृण, रत्न, मोती, पत्थर, स्वर्ण में समान दृष्टि रखने वाले, शाश्वत मोक्षसुख में राग रखने वाले धर्मशास्त्रकारों ने कहा है---
धर्म से अच्छे कुल में जन्म होता है। धर्म से दिव्य रूप की प्राप्ति होती है। धर्म से धन बढ़ता है, धर्म से सुविस्तृत कीर्ति फैलती है ॥१२॥ धर्म असाधारण कल्याणकारक है, धर्म समस्त दुःखों की एकमात्र (अनुपम) औषध है। धर्म विपूल शक्ति भी है, धर्म रक्षा और शरण है ॥१३॥ अधिक कहने से क्या, समस्त संसार में इन्द्रिय और मन को सुन्दर लगने वाली जो भी वस्तु दिखाई देती है वह सब धर्म का फल है ॥१४॥ भयंकर मरणावस्था प्राप्त होने पर जबकि दुःख से अजित धन, शरीर, सगे-सम्बन्धी साथ छोड़ देते हैं. तब धर्म ही सच्चा (अच्छी तरह) सहायक होता है ।।१५।। धर्म सुरलोक की प्राप्ति कराता है। पुनः धर्म से ही मनुष्य योनि में जन्म
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