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________________ चरियसंगहणिगाहाओ ] अणुसज्जंति । जे उण सद्दाइविसयविमोहियमणा, भावरिउ-इन्दियाणुकूलवत्तिणो, अभावियपरमत्थमग्गा, 'इमं सुन्दरं, इमं सुन्दरयरं' ति सुन्दरासुन्दरेसु अविणिच्छियमई ते रायसा मज्झिमपुरिसा बुहजणोवहसणिज्जाए, विडंबणमेत्तपडिबद्धाए, इह परभवे य दुक्खसंबढियाए कामकहाए अणुसज्जति । - जे उण मणगं सुन्दरयरा, सावेक्खा उभयलोएसु, कुसला ववहारनयमएणं, परमत्थओ सारविन्नाणरहिया, खुद्दभोएसु अबहुमाणिणो, अवियण्हा उदारभोगाणं, ते किंचिसत्तिया मज्झिमपुरिसा चेव आसयविसेसओ सुगइ-दुग्गइवत्तिणीए, जीवलोगसभावविभमाए, सयलरसनिस्संदसंगवाए, विविहभावपसइनिबंधणाए संकिण्णकहाए अणुसज्जति । जे उण जाइजरा-मरणजणियवेरग्गा, जम्मंतरम्मि वि कुसलभावियमई, निग्विण्णा कामभोगाण, मुक्कपाया पावलेवेण विन्नायपरमपयसरुवा, आसन्ना सिद्धिसंपत्तीए, ते सत्तिया उत्तिमपुरिसा सग्गनिव्वाणसमारुहणवत्तिणीए बुहजणपसंसणिज्जाए, सयलकहासुन्दराए, महापुरिससेवियाए धरूमकहाए चेव अणुसज्जति। बहुलायाम् अर्थकथायाम् अनुषजन्ति । ये पुनः शब्दादिविषयमोहितमनसः, भावरिपु-इन्द्रियानुकूलवर्तिनः, अभावितपरमार्थमार्गाः 'इदं सुन्दरम्', 'इदं सुन्दरतरम्' इति सुन्दराऽसुन्दरेष अविनिश्चितमतयः, ते राजसा मध्यमपुरुषा बहुजनोपहसनीयायाम् विडम्बनामात्रप्रतिबद्धायाम, इह परभवे च दुःखसंवर्धिकायां कामकथायां अनुषजन्ति। __ ये पुनर्मनाक् सुन्दरतराः, सापेक्षा उभयलोकेषु, कुशला व्यवहारनयमतेन, परमार्थतः सारविज्ञानरहिताः, क्षुद्रभोगेषु अबहुमानिनः, अवितृष्णा उदारभोगानाम्, ते किञ्चित् सात्त्विका मध्यमपुरुषाश्चैव आशयविशेषतः सुगति-दुर्गतिवर्तिन्याम्, जीवलोकस्वभावविभ्रमायाम, सकलरसनिस्यन्दसंगतायाम्, विविधभावप्रसूतिनिबन्धनायां संकीर्णकथायाम् अनुषजन्ति । ये पुनर्जातिजरामरणजातवैराग्याः जन्मान्तरेऽपि कुशलभावितमतयः निविण्णाः कामभोगेभ्यः, मुक्तप्रायाः पापलेपेन, विज्ञातपरमपदस्वरूपाः, आसन्नाः सिद्धिसंप्राप्त्याः, ते सात्त्विका उत्तमपुरुषाः स्वर्गनिर्वाणसमारोहण-वर्तिन्यां, । बुधजनप्रशंसनीयायां सकलकथासुन्दरायां महापुरुषसेवितायां धर्मकथायां अनुषजन्ति । ऐसी अर्थकथा में अनुरक्त होते हैं। पुन: जिसका मन शब्दादि विषयों में मोहित है, भावों की शत्रु इन्द्रियों के अनुकूल जो आचरण करते हैं, परमार्थमार्ग का जिन्होंने चिन्तन किया है, 'यह सुन्दर है, यह उससे अधिक सुन्दर है'-इस प्रकार सुन्दर तथा असुन्दर में जिनकी बुद्धि निश्चित नहीं है, ऐसे राजस मध्यमपुरुष अधिक लोगों के द्वारा उपहसनीय, छल से सम्बन्ध रखने वाली, इस भव तथा परमव में दुःख को बढ़ाने वाली कामकथा में अनुरक्त होते हैं । ___ जो कुछ सुन्दरतर हैं, इस लोक तथा परलोक के प्रति अपेक्षावान हैं, गवहार मार्ग में कुशल हैं। परमार्थरूप से सारभूत विज्ञान से रहित हैं, क्षुद्र भोगों को जो बहुत नहीं मानते हैं, भोगों के प्रति जिनकी लालसा नहीं है वे कुछ कुछ सात्विक और मध्यमपुरुष ही भाशय विशेष से सुगति और दुर्गति में ले जाने वाली, संसार के स्वभावरूप चित्तभ्रमवालो, समस्त रसों के झरने से युक्त, अनेक प्रकार के पदार्थों (भावों) की उत्पत्ति में कारण संकीर्णकथा में अनुरक्त होते हैं । जन्म, जरा, मरण के प्रति जिन्हें वैराग्य उत्पन्न हो गया है, इतर जन्म में भी जिनकी बुद्धि में मंगल की भावना है, काम-भोगों से जो विरक्त हैं पारों के संसर्ग से जो प्रायः रहित हैं, जिन्होंने मोमपद के स्वरूप को जान लिया है, जो सिद्धि-प्राप्ति के सन्मुख हैं ऐसे वे सात्त्विक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001881
Book TitleSamraicch Kaha Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1993
Total Pages516
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size13 MB
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