SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चरियसंगहणिगाहाओ ] आयरिअव्वाइं अणिस्सिएज सम्मत्त-न ण-चरणाई। दोगच्चविउडणाई चिन्तामणिरयण आई ॥६॥ एत्थं पुण अहिगारो ता सोअव्वेहि प युअपबंधे । सव्वन्नुभासिआई सोअव्वाई ति भणियमिणं ॥१०॥ वोच्छं तप्पडिबद्धं भवियजणाणंदयारि ण परमं । संखेवओ महत्थं चरिअकहंत निसामेह ॥११॥ तत्थ यं 'तिविहं कथावत्थु ति पुवायरियपवाओ। तं जहा-दिव्वं, दिव्वमाणुसं माणसं च । तत्थ दिव्वं नाम जत्थ केवलमेव देवचरिअं वणिज्जइ । दिवमाणुसं पुणजत्थ दोण्हपि दिव्वमाणुसाणं। माणुसं तु जत्थ केवलं माणुसचरियं ति । एत्थ सामन्नओ ८ तारिकहाओ हवंति । तं जहा-अत्थकहा, कामकहा, धम्मकहा, संकिण्णकहा य । तत्थ अत्थकहा नाम, जा अत्थोवायाणपडिबद्धा, असि-मसिकसि-वाणिज्ज-सिप्पसंगया, विचित्तधाउवायाइपमुहमहोपायसंपउता, साम-भेय-उवप्पयाण-दण्डाइपयत्थविरइआ सा अत्थकह त्ति भण्णइ । आचरितव्यानि अनाश्रितेन सम्यक्त्व-ज्ञान-चरणानि । दौर्गत्यविकुटनानि चिन्तामणिरत्नभूतानि ॥६॥ अत्र पुनरधिकारस्तावत् श्रोतव्यैः प्रस्तुतप्रबन्धे । सर्वज्ञभाषितानि श्रोतव्यानीति भणितमिदम् ॥१०॥ वक्ष्ये तत्प्रतिबद्धां भव्यजनानन्दकारिणीं परमाम् । संक्षेपतो महा● चरित्तकथां तां निशामयत ॥११॥ तत्र च 'त्रिविधं कथावस्तु' इति पूर्वाचार्यप्रवादः । तद्यथा-दिव्यम्, दिव्यमानुषम्, मानुष च। तत्र दिव्यं नाम यत्र केवलमेव देवचरितं वर्ण्यते । दिव्यमानुषं पुनः यत्र द्वयोरपि दिव्यमानुषयोः (चरितम्)। मानुषं तु यत्र केवलं मानुषचरितमिति । अत्र सामान्यतः चतस्रः कथा: भवन्ति । तद्यथा-अर्थकथा, कामकथा, धर्मकथा, संकीर्णकथा च । तत्र अर्थकथा नाम या अर्थोपादान-प्रतिबद्धा, असि-मसि-कृषि-वाणिज्य शिल्पसंगता, विचित्रधातुवादादि-प्रमुखमहोपायसंप्रयुक्ता, सामभेदोपप्रदान-दण्डादिपदार्थविरचिता सा 'अर्थकथा' इति भण्यते ।। चिन्तामणि रत्नभूत सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र का अनाश्रित होकर आचरण करना चाहिए ॥६॥ प्रस्तुत प्रबन्ध में, जैसा कि कहा गया है, सर्वज्ञ द्वारा कही गयी वाणी (ही) श्रोताओं के सुनने योग्य है ॥१०॥ इन्हीं (माङ्गलिक विषयों) से सम्बन्धित तथा भव्यों के लिए आनन्ददायक महान् (गम्भीर) अर्थवाली चरितकथा को मैं संक्षेप में कहूँगा, उसे आप (शान्तिपूर्वक) श्रवण करें ॥११।। कथाओं के तीन प्रकार - कथावस्तु तीन प्रकार की होती है, ऐसा पूर्वाचार्यों का कथन है-दिव्य, दिव्यमानुष और मानुष । दिव्यकथा वह होती है जहाँ केवल देवों के वरित का वर्णन किया जाता है। दिव्यमानुष कथा वह है जहाँ देव और मनुष्य दोनों के ही चरित का वर्णन किया जाता है। मानुष कथा वह है जहाँ केवल मनुष्यों के ही चरित का वर्णन किया जाता है। सामान्य रूप से कथायें चार प्रकार की होती हैं-अर्थकथा, कामकथा, धर्मकथा और संकीर्ण कथा । अर्थकथा वह है जिसका सम्बन्ध आर्थिक उपादानों से है। असि, मसि, १. भूयाई २. सोयन्वेहि, ३. पत्युय पबंधे, ४. भासियाई, ५. सोयब्वाई, ६. चरियकहतं, ७. देवरियं, ८. धाऊ, ९. विरइया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001881
Book TitleSamraicch Kaha Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1993
Total Pages516
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy