SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 358
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [समराइच्चकहा __इओ य विसालानयरीए पाणवाडए जा सा पुव्वभवजणणी सुसुमारभवे वट्टभाणी वावाइया, सा तत्थ छेलियत्ताए समुप्पन्ना। तओ तीए गन्भम्मि एलयत्ताए परिक्खत्तो म्हि । जाओ कालक्कमेणं, पत्तो जोव्वणं । महामोहमोहियमणो मेहुणनिमित्तं आरूढो अम्मयं । दिट्ठो य नियजहवइणा; कसायजोएणं' तहा हओ मम्मदेसे, जहा पाणे परिच्चइऊणं निययवीएण चेव सम्प्पन्नो तोए गन्मम्मि । अवि य कम्ममलविणडिएणं तत्थ मरतेण मंदभग्गेणं । अप्पा हु अप्पण च्चिय जणिओ जणणीए गब्भम्मि ॥४०२॥ साय पच्चासन्ने पसवकाले गुणहरेण रन्ना पारद्धीओ नियत्तमाणेण अणासाइयन्नपाणिणा तहाविहच्छेत्तभायम्मि कायजड्डयाए मंद मंद परिसक्कमाणी आयण्णमायड्ढिऊण कोडंड विद्धा कण्णियसरेण । पहारगरुययाए निवडिया धरणिवठे। लद्धलक्खो परितुट्ठो राया, सभागओ तमुद्देसं । दिट्ठा फुरफुरेंतपाणा 'आवन्नसत्ता एस' त्ति लक्खिया तेणं। तओ य से उयर वियारिऊणं नोणिओ अहं । इतश्च विशालानगर्या प्राणवाटके या मे पूर्वभवजननी शिशुमारभवे वर्तमाना व्यापादिता सा तत्र छागीतया सनुत्पन्ना । ततस्तस्था गर्भे एडकतया प्रक्षिप्तोऽस्मि । जातः कालक्रमण, प्राप्तो यौवनम् । महामोहमोहितमना मैथुननिमित्तमारूढोऽम्बाम् । दृष्टश्च निजयूथपतिना। कषाययोगेन तथा हतो मर्मदेशे यथा प्राणान् परित्यज्य निजकबोजेनैव समुत्पन्नस्तस्या गर्भे । अपि च कर्ममलविनटितेन तत्र म्रियमाणेन मन्दभाग्येन । आत्मा खलु आत्मनैव जनितो जनन्या गर्भे ॥४०२।। सा च प्रत्यासन्ने प्रसवकाले गुणधरेण राज्ञा पापधितो निवर्तमान अनासादितान्यप्राणिना तथाविधक्षेत्रभागे कायजडतया मन्दं मन्दं परिष्वकन्ती (गच्छन्ती) आकर्णमाकृष्य कोदण्डं विद्धा कणिकशरेण । प्रहारगुरुतया निपतिता धरणीपृष्ठे। लब्धलक्ष्यः परितुष्टो राजा। समागतस्तमहेशम । दष्टा स्फुरत्प्राणा, 'आपन्नसत्त्वा एषा' इति लक्षिता तेन । ततश्च तस्या उदरं विदार्य बहिर ] नीतोऽहम् । समपितोऽजापालक स्य। अन्यस्तनपानेन जीवितः, प्राप्तः कुमारभावम् । उज्जयिनी नगरी के प्राणवाटक में, जो मेरी मां सूंस के भव में मारी गयी थी, वह बकरी के रूप में उत्पन्न हुई। उसके गर्भ में मैं बकरे के रूप में फेंक दिया गया। कालक्रम से उत्पन्न हुआ, युवावस्था को प्राप्त हुआ। महामोह से जिसका मन मोहित हो गया है, ऐसा मैं मैथुन के लिए माता पर चढ़ गया। मेरे समूह के स्वामी ने देखा । कषाय के योग से उसने मर्मस्थान पर इस प्रकार मारा कि प्राणों को त्याग कर अपने ही बीज से उसके गर्भ में आया। मन्दभाग्य से मरा हुआ, कर्ममलों की लीला से स्वयं को ही स्वयं की ही माता के गर्भ में उत्पन्न किया ।।४०२।। जब उसका (माता का) प्रसवकाल निकट आया तो शिकार से लौटे हुए राजा गुणधर ने अन्य प्राणी न पाकर शरीर की शक्तिहीनता के कारण मन्द-मन्द जाती हई उसको कान तक धनुष खींचकर कीर्णक बाण से वेध दिया । जोर का प्रहार होने के कारण (वह) धरती पर गिर पडी। लक्ष्य को प्राप्त कर राजा सन्तष्ट हआ। (वह) उस स्थान पर आया। उसने प्राण कंपाती हुई उसे 'यह गर्भवती है। इस प्रकार देखा । अनन्तर उसके पेट १. कसायोदएणं-ख, २. अइक्क न्तो कोइ कालो । समासन्ने पसवकाले मम पुत्तेण चेव-ख । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001881
Book TitleSamraicch Kaha Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1993
Total Pages516
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy