SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 340
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१२ चाइयम्मकरणे । अहमथि तमेव सुत्तचेड्ड(8)यं अवलंबिऊण ठिओ कंचि कालं । समालिगिओ अहं तीए । मए वि अत्तणो चित्तवियारमदंसयंतेण पुदिव व बहु मन्निया। एत्थंतरम्मि पहयाई पाहाउयतुराई । पढियं कालनिवेयएण। एसा वच्चइ रयणी विमुक्कतमके सिया विवण्णमुही। पाणीयं पिव दाउं परलोयगयस्स सूरस्स ॥३७॥ पहाया रयणी, कयं गोसकिच्चं । ठिओ म्हि अत्थाइयामंडवे । कया सविसेसं सामंतप्पमुहाणमणजीवीणं पसाया। पविट्ठो मंतिघरयं । आगया विमलमइप्पमुहा महामंतिणो । साहिओमए एतेसि निययाहिप्पाओ, न बहुमओ तेसिं । भणिय च णेहि--देव, अपरिणओ ताव कुमारगुणहरो, पयापरिरक्खणं पि धम्मो चेव ति। तओ मए भणियं-किं न याणह तुम्भे, कुलठिई एसा अम्हाणं, जमागए धम्मदए न चिट्ठियध्वं ति । तेहिं भणियं-देवो जाणइ ति। अइक्कंतो सो दियहो, समागया रयणी। ठिओ अत्थाइयामंडवे । कंचि वेलं गमेऊण गओ वासभवणं । नियत्तदेवीसिणेहभावओ समागया मे अहमपि तदेव सुप्तचेष्टितमवलम्ब्य स्थितः कञ्चित्कालम् । समालिङ्गितोऽहं तया । मयाऽपि आत्मनश्चित्तविकारमदर्शयता पूर्वमिव बहु मता। अत्रान्तरे प्रहतानि प्राभातिकतर्याणि । पठितं कालनिवेदकेन । एषा व्रजति रजनी विमुक्ततमःकेशिका विवर्णमुखी । पानीयमिव दातुं परलोकगताय सुराय ॥३७॥ प्रभाता रजनी, कृतं प्रातःकृत्यम् । स्थितोऽस्मि आस्थानिकामण्डपे । कृता सविशेषं सामन्तप्रमुखाणामनुजीविनां प्रसादाः । प्रविष्टो मन्त्रिगृहम् । आगता विमलमतिप्रमुखा महामन्त्रिण: कथितो मया एतेषां निजाभिप्रायः, न बहुमतस्तेषाम् । भणितं च तैः-देव! अपरिणतस्तावत् कुमारगुणधरः प्रजापरिरक्षणमपि धर्म एवेति । ततो मया भणितम्-किं न जानीथ ययम्, कुल स्थितिरेषाऽस्माकम; यदामते धर्मदूते न स्थातव्यमिति । तैर्भणितं-देवो जानातीति । अतिक्रान्तः स दिवसः, समागता रजनी। स्थित आस्थानिकामण्डपे । काञ्चिद् वेलां गमयित्वा गतो वासभवनम् । हुए के समान ही कुछ समय तक पड़ा रहा। उसने मेरा आलिंगन किया। मैंने भी अपने चित्त के विकार को न दिखलाते हुए पहले के समान आदर दिया। इसी बीच प्रातःकालीन तूर्यनाद हुआ । समय का निवेदन करने वालों ने पढ़ा अन्धकार रूपी बालों को खोलकर, फीके मुंह वाली यह रात्रि परलोक गये हुए देव के लिए मानो पानी देने के लिए जा रही है ।।३७५॥ प्रातःकाल हुआ। प्रातःकालीन क्रियाओं को किया। सभामण्डप में बैठा। सामन्तादि प्रमुख निकटस्थ लोगों पर अनुगृह किया। (अनन्तर) मन्त्रिगृह में प्रविष्ट हुआ । 'विमलमति' जिनमें प्रमुख थे, ऐसे महामन्त्री आये । मैंने इनसे अपना अभिप्राय कहा, उन्होंने नहीं माना। उन्होंने कहा-"महाराज ! कुमार गुणधर अभी बड़े नहीं हुए हैं (अतः) प्रजा की रक्षा भी धर्म ही है।" तब मैंने कहा - "क्या आप लोग हम लोगों के कुल की मर्यादा को नहीं जानते हैं कि धर्मदूत (सफेद बाल) के आने पर (घर में) नहीं रहना चाहिए ?" उन्होंने कहा-"महाराज जानें ।" वह दिन बीता, रात्रि आयी। सभामण्डप में बैठा । (वहाँ पर) कुछ समय बिताकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001881
Book TitleSamraicch Kaha Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1993
Total Pages516
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy