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________________ परत्ती भयो] ትዝኛ पासिऊण य सुहविबुद्धा एसा । सिट्टो य तोए जहाविहि' दइयस्स । हरिसवसुभिन्नपुलएणं भणिया य तेणं । सुंदरि ! सयलसयणगणनायगो ते पुत्तो भविस्सइ । तओ सा एवं ति भत्तारवयणमहिणंदिऊण पहलुमुहपंकया जाया । तओ विसेसओ तिवग्गसंपायणरयाए संपूरियसयलमणोरहाए अभज्जमाणपसरं पुण्णफलमणुहवंतीए पत्तो पसूइसमओ । तओ पसत्थे तिहिकरणमुत्तजोए सुहंसुहेण पसूया एसा । जाओ से दारओ। निवेइओ परिओसयारिणीए गेहदासीए वेसमणस्स। परितुट्ठो सेट्ठी। दिन्नं तीए पारिओसियं । दवावियं च तेण महादाणं, कारावियं वद्धावणयं । तओ अइक्कते मासे महाविभईए सयलनयरजणपरिगओ घेत्तूण दारयं गओ धणदेवजक्खालयं सेट्टी। संपाइया तस्स महिमा, पाडिओ चलणेसु दारओ। कयं से नामं धणं त्ति । तओ कालक्कमेण पत्तो कुमारभावं । __एत्यंतरम्मि सो जालिणीजीवनारओ तओ नरयाओ उव्वट्टिऊण पुणो संसारमाहिडिय अणंतरभवे तहाऽकामनिज्जराए मरिऊण तमि चेव नयरे पुण्णभद्दस्स सत्थवाहस्स गोमईए भारियाए च सुखविबुद्धा एषा । शिष्टश्च तया यथाविधि दयिताय । हर्षवशोद्भिन्नपुलकेन भणिता च तेन । सन्दरि ! सकलस्वजनगणनायकस्तव पुत्रो भविष्यति । ततः सा एवमिति भर्तृवचनमभिनन्द्य प्रहृष्टमुखपङ्कजा जाता। ततो विशेषतस्त्रिवर्गसम्पादनरताया सम्पूरितसकलमनोरथाया अभज्यमानप्रसरं पुण्यफलमनुभवन्त्याः प्राप्तः प्रसूतिसमयः। ततः प्रशस्ते तिथि-करण-मुहूर्त-योगे सुखेन प्रसूता एषा । जातस्तस्या दारकः । निवेदितः परितोषकारिण्या गेहदास्या वैश्रमणाय । परितुष्टः श्रेष्ठी। दत्तस्तस्यै पारिताषिकम्। दापितं तेन महादानम्, कारितं च वर्धापनकम् । ततोऽतिक्रान्ते मासे महाविभूत्या सकलनगरजनपरित्तो ग होत्वा दारकं गतो धनदेवालयं श्रेष्ठी। सम्पादितस्तस्य महिमा, पातितश्चरणयोर्दारकः । कृतं तस्य नाम 'धन' इति । ततः कालक्रमेण प्राप्तो कुमारभावम् । अत्रान्तरे स जालिनीजीवनारकस्ततो नरकादुवृत्य पुनः संसारमाहिण्ड्य अनन्तरे भवे तथाऽकामनिर्जण्या मृत्वा तस्मिन्नेव नगरे पूर्णभद्रस्य सार्थवाहस्य गोमत्या भार्यायाः कुक्षौ दुहितत्वेथा। वह घूमती हुई सुन्दर आंखों की शोभा से युक्त था तथा उसके सभी अंग सुन्दर और अभिराम थे। स्वप्न देखकर वह सुखपूर्वक जाग गयी। उसने (स्वप्न के विषय में) विधिपूर्वक पति से निवेदन किया। हर्ष के वश रोमांचित हो उसने कहा-"सुन्दरि ! समस्त बन्धुओं में श्रेष्ठ तुम्हारा पुत्र उत्पन्न होगा।" तब 'अच्छा' इस प्रकार कह पति के वचनों का अभिनन्दन कर प्रफुल्लित मुखकमल वाली हो गयी। तब धर्म, अर्थ और काम के सम्पादन में रत, समस्त लोगों के मनोरथ को पूरा करने वाली, जिसके प्रसार को रोका नहीं जा सकता, ऐसे पुण्य के फल का अनुभव करती हुई श्रीदेवी का प्रसूति समय आ गया। तब प्रशंसनीय तिथि, करण, मुहूर्त तथा योग में इसने सुखपूर्वक प्रसव किया। उसके पुत्र उत्पन्न हुआ। सन्तुष्ट करने वाली गृहदासी ने वैश्रमण से कहा। सेठ प्रसन्न हुआ। उसने गृहदासी को पारितोषिक दिया। उसने महादान दिलाया और उत्सव कराया । अनन्तर एक माह का समय बीतने पर बड़ी विभूति के साथ सभी नगरनिवासियों से घिरा हुआ सेठ बालक को लेकर धनदेव (वैश्रमण) के मन्दिर में गया। उसकी पूजा की और चरणों में बालक को रख दिया। बालक का नाम धन रखा। अनन्तर कालक्रम से बालक कुमारावस्था को प्राप्त हुआ। इसी बीच वह जालिनी का जीव नारकी उस नरक से निकलकर पुन: संसार में भ्रमण कर तथा दूसरे भव में अकामनिर्जरा से भरकर उसी नगर में पूर्णभद्र सार्थवाह (व्यापारी) की गोमती नामक पत्नी के गर्भ में पुत्री के १ जहाबिह-ख, २. अमरगमाण"-, ३. दिन्नं -ख. ४. धणदेवालयक । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001881
Book TitleSamraicch Kaha Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1993
Total Pages516
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size13 MB
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