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________________ २२५ [समाइक नाम सत्यवाहो ति । तस्स समाणकुलरूव विहवसीला' सिरिदेवी नाम भारिया । ताणं च परोप्परं सिणेहसारं विसय सुहमणुहवंताण अइक्कंतो कोइ कालो । अन्नयावच्चचिता समुप्पज्जइ । तओ तन्नयरसन्निहियस्स घणदेवाभिहाणजक्खस्स महापूयं काऊण कयं उवाइयमणेहिं । भयवं, जइ नो तुह पभावओ सुउप्पत्ती भविस्सइ, तओ भगवओ सव्वनयरजणाहिट्ठियं महामहं करिस्साम, सुयस्स य भयवओ चैव नामं उक्खिविस्सामोति । तओ ताणं मज्झिमे वयसि वट्टमाणाणं सो बंभलोयकप्पवासी देवो अहाउयमणुवालिऊण तओ चुओ सिरिदेवीए गन्भे उववन्नोति । दिट्ठो य तीए सुमिणयंमि तीए चेव रयणीए पभायसमय सि उत्तुंगधवलकाओ अच्तलीलगामी अणवरयपयट्टदाणो गंडयलावडियछप्पयावली चउदसणभासुरो आरत्ततालू लुलंतलीलाकरो कणयसंकलाबद्ध घंटाजुयलो रत्तचमरभूसियाणणो अंकुसोच्छद्रयकुंभभाओ घुम्मंतचारुलोयगसिरो सम्बंगसुंदराहिरामो मत्तहत्थी वयणेणमुयरं पविसमाणो त्ति । नाम सार्थवाह इति । तस्य समानकुल रूप विभव - शोला 'श्रीदेवी' नाम भार्या । तयोश्च परस्परं स्नेहसारं विषयसुखमनुभवतोरतिक्रान्तो कोऽपि कालः । अन्यदाऽपत्यचिन्ता समुत्पद्यते । ततस्तन्नगरसन्निहितस्य धनदेवाभिधानयक्षस्य महापूजां कृत्वा कृतमुपयाचितमाभ्याम् - भगवन् ! यदि आवयोस्तव प्रभावतः सुतोत्पत्तिर्भविष्यति ततो भगवतो सर्वनगरजनाधिष्ठितं महामहं करिष्याम इति । सुतस्य च भगवत एव नाम उत्क्षेप्स्याम इति । ततस्तयोर्मध्यमे वयसि वर्तमानयोः स ब्रह्मलोक कल्पवासी देवो यथाऽऽयुष्कमनुपालय ततश्च्युतः श्रीदेव्या गर्भे उत्पन्न इति । दृष्टश्च तया स्वप्ने तस्यामेव रजन्यां प्रभातसमये उत्तुङ्ग - धवलकायोऽत्यन्तलीलागामी अनवरत प्रवृत्तदानो गण्डतलापतितषट्पदावलिश्चतुर्दशन भासुर आरक्ततालुर्लीलालुलत्करः कनकशृङ्खलाबद्धघण्टायुगलो रक्तचामरभूषिताननः अङ्क शावच्छादितकुम्भभागः घूर्णच्चारुलोचनश्रीः सर्वाङ्गसुन्दराभिरामो मत्तहस्ती वदनेनोदरं प्रविशन्निति । दृष्ट्वा सम्पादन में आसक्त वैश्रमण नाम का व्यापारी ( सार्थवाह ) था । उसकी समान कुल, रूप और वैभव वाली श्रीदेवी नामक पत्नी थी। उन दोनों का स्नेह ही जिसमें सार था, ऐसे विषयसुख का अनुभव करते हुए कुछ समय व्यतीत हो गया । एक बार दोनों को सन्तान की चिन्ता उत्पन्न हुई । तब उस नगर के पास के धनदेव नामक यक्ष की महापूजा कर इन दोनों ने याचना की, “भगवन् ! यदि आपके प्रभाव से हम दोनों के पुत्र की उत्पत्ति होगी तो भगवान् की समस्त नगरनिवासियों के साथ बहुत बड़ी पूजा करेंगे और पुत्र का नाम भगवान् के ही नाम पर रखेंगे ।" अन्तर उन दोनों के युवावस्था में वर्तमान होने पर वह ब्रह्मस्वर्ग का वासी देव आयु पूरी कर वहाँ से च्युत हो श्रीदेवी के गर्भ में आया। श्रीदेवी ने स्वप्न में उसी रात्रि को रात्रि के अन्तिम समय में मुख से उदर में प्रवेश करते हुए एक मतवाले हाथी को देखा । वह हाथी ऊँचा और सफेद शरीर वाला था और अत्यन्त लीलापूर्वक गमन करने वाला था । निरन्तर उससे मद झर रहा था, उसके कपोलस्थल पर भौंरों की पंक्ति मँडरा रही थी । चार दाँतों से वह देदीप्यमान था । लाल तालु वाला वह सूड को लीलापूर्वक डुला रहा था, उसके ऊपर सोने की सकिल से दो घण्टे बँधे थे, लाल-लाल चामर से उसका मुँह विभूषित था, उसका कुम्भस्थल अंकुश से ढका हुआ १. सीलसिरिया सिरि, सीला सिरियादेवी, २. मिहाणस्स जक, ३. लावबद्ध । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001881
Book TitleSamraicch Kaha Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1993
Total Pages516
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size13 MB
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