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तानो भयो।
१७१ पलायमाणो मंगलगो। चितियं च मए- न एत्थ अन्ने चोरा दीसंति, पलायइ य एसो। ता किमेयं ति ? एत्थंतरम्मि दिवा सोणियाणुरंजिया छरिया। गहिया य सा तए पच्चभिन्नाया य। तमो संजाओ ते वियप्पो । किमेयं मंगलगेण वन सियं भवे ? अ वा न एयस्स किपि एवं ववसायकारणं उपपेक्खामि । ता सद्देमि ताव एवं ति । एसेव मे एत्थ परमत्थं साहिस्सइ। सहिओ मंगलगो, जाव अहिययरं पलाइउमारद्धो। तओ अवगओ ते वियप्पो । हंत ! एएण चेव ववसियं ति । ता किं पुण से इमस्स ववसायस्स कारणं । आभोइओ निहाणयवृत्तंतो। चितियं च तुमए-नत्थि अकरणिज्ज नाम लोहवसगाणं ति । अओ चेव निमित्तओ जिणमईवुत्तो वि इमिणा विगप्पिओ भवे। अन्नहा कहं तारिसी महाकुलपसूया सुविन्नायजिणवयणसारा य तारिसं उभय लोगविरुद्धं करिस्सइ । एत्थंतरम्मि पत्ता ते साहवो तमुद्देस । पच्चभिन्नाओ य तेहिं । वंदिया य तुमए । धम्मलाहिओ साहूहि । पुच्छिओ य तेहिं । सावय ! किमेयं ति? साहिओ तुमए तेसि कहावत्तो वत्तंतो। समासासिओ साहूहि । एत्थंतरम्मि दिट्ठो अर्णगदेवेणं । वंदिओ सा तए। अभिणंदिओ तुम इमिणा धम्मलाहेण । दृष्टं पृष्ठतः, यावद् दृष्ट: ससम्भ्रमाकुलं पलायमानः मङ्गलकः । चिन्तितं च त्वया--न अत्र अन्ये चौरा दृश्यन्ते, पलायते च एषः। ततः किमेतदिति । अत्र न्तरे दृष्टा शोणिताऽनुरक्ता छुरिका । गहीता च सा त्वया प्रत्यभिज्ञता च । ततः सञ्जातस्तव विकल्पः । किमेतद् मङ्गलकेन व्यवसितं भवेत् ? अथवा न एतस्य किमपि एवं व्यवसायवारण मुत्प्रक्षे । ततः शब्दयामि तावद् एतमिति । एष एव ममात्र परमार्थ व थयिष्यति । शब्दितो मङ्गलकः, यावद् अधिकतरं पलायितुमारब्धः। ततोऽपगतस्तव विकल्पः । हन्त ! एतेन एव एतद् व्यवसितमिति । ततः किं पुनः तस्याऽस्य व्यव. सायस्य कारणम् ? आभोगितो निधानकवृत्तान्तः। चिन्तितं च त्वया--नास्ति अकरणीयं नाम लोभवशगानामिति । अत एव निमित्ततो जिनमतोवृत्तान्तोऽपि अनेन विकल्पितो भवेत् । अन्यथा कथं तादृशी महाकुलप्रसूता सुविज्ञातजिनवचनसारा च तादृशं उभयलोकविरुद्धं करिष्यति । अत्रान्तरे प्राप्तास्ते साधवस्तमुद्देशम् । प्रत्यभिज्ञातश्च तैः। वन्दिताश्च त्वया। धर्मलाभितः साधुभिः । पृष्टश्च तैः। श्रावक ! किमेतदिति । कथितस्त्वया तेषां यथावृत्तो वृत्तान्तः। समाश्वासितस्साधुभिः । अत्रान्तरे दृष्टोऽनङ्गदेवेन । वन्दितः स त्वया । अभिनन्दितस्त्वमनेन धर्मलाभेन । पृष्टः भागता हुआ दिखाई दिया। तुमने सोचा यहाँ पर दूसरे चोर भी दिखाई नहीं दे रहे हैं और यह भागा जा रहा है, अतः यह क्या है ? इसी बीच खून से सनी हुई छुरी देखी। उसे तुमने उठा लिया और पहचान लिया । अतः तुम्हारे मन में विकल्प हुआ---क्या यह मंगलक ने किया है ? इसके ऐसा करने का कारण दिखाई नहीं पड़ता है। अतः मंगलक को आवाज देता हूं। यही मुझे सही बात कहेगा । मंगलक को आवाज दी । उसने अधिक तेजी से भागना प्रारम्भ किया । अतः तुम्हारा विकल्प दूर हो गया। हाय ! इसी ने यह किया है। तब इसके इस कार्य का कारण क्या है ? गड़े हुए धन का वृत्तान्त ज्ञात हुआ । तुमने सोचा--लोभ के वशीभूत हुए प्राणियों के लिए कुछ भी अकरणीय नहीं है । इसी कारण इसी ने जिनमती के वृत्तान्त को गढ़ लिया । अन्यथा उस प्रकार की महान् कुल में उत्पन्न, जिनवचनों के सार को भलीभांति जानने वाली दोनों लोकों के विरुद्ध वैसा आचरण कैसे करेगी? इसी बीच वे साधु उस स्थान पर आ गये। उन लोगों ने पहिचान लिया । तुमने वन्दना को। साधुओं ने धर्मलाभ दिया । उन लोगों ने पूछा-'श्रावक ! यह क्या है ?" तुमने उन लोगों से घटित वृत्तान्त कहा । साधुओं ने आश्वासन दिया। इसी बीच अनंगदेव को देखा । तुमने वन्दना की । इन्होंने धर्मलाभ देकर तुम्हारा अभिनन्दन किया।
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जोइयं-क।
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