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________________ वीवो भवो] १४६ तेण-निरूवेह आणंदकुमारस्स रज्जाभिसेयदिवसं । तेहिं भणियं -जं देवो आणवेइ। निरूविऊण साहिओ णेहि पंचमो दिवसो । तओ उवणीयाई अहिसेयमंगलाई। तं जहा-मच्छजुयलं पुष्णकलसो धवल कुसुमाइं महापउमा सिद्धत्थया पुढविपिंडो वसहो महंतयं दहियपुण्णं च भंडयं महारयणाई गोरोयणा सोहचम्मं धवलायवत्तं भद्दासणं चामराओ दुरुव्वा अच्छसुरा महाधओ गयमओ धन्नाई दुगुल्लाणि अन्नाणि' य एवमाइयाइं पसत्थदव्वाई ति । एत्थंतरम्मि परिचितियं राइणा-काऊणमाणंदकुमारस्स रज्जाहिसेयं तओ गमिस्सामि धम्मघोसगुरुससीवं ति । एवं व चितयंतो' अहिसेयदिणं पडिच्छमाणो चिट्ठइ। इओ य पुवकयकम्मदोसओ अमुणियनरिंदाहिप्पाओ घडिओ दुम्मइणा सह आणंदकुमारो। मंतियं च तेहिं 'कहंचि वंचणापओएण वावाएमो महारायं' ति । सुओ अहिसेयवुत्तंतो। मिच्छाहिनिवेसेण सचित्तदुट्टयाए य विपरोओ परिणओ आणंदस्स। चितियं च तेणं - नूणमहमणेण इमिणा ववएसेण मारिउं ववसिओ। ता कहमहमेवं छलिज्जामि। अहवा सच्चए वि एयम्मि वुत्तंते अलं मे कुमारस्य राज्याभिषेकदिवसम् । तैर्भणितम्-यद् देव आज्ञापयति । निरूप्य च कथितस्तैः पञ्चमो दिवसः। तत उपनीतानि अभिषेकमङ्गलानि । तद् यथा---मत्स्ययुगलं पूर्णकलशो धवलकुसुमानि महापद्माः सिद्धार्थाः पृथ्वीपिण्डो वृषभो महद् दधिपूर्णं च भाण्डं महारत्नानि गोरोचना सिंहचर्म धवलातपत्रं भद्रासनं चामरा दूर्वा अच्छसुरा महाध्वजो गजमदो धान्यानि दुकूलानि अन्यानि चैवमादिकानि प्रशस्तद्रव्याणि इति । अत्रान्तरे च परिचिन्तितं राज्ञा-कृत्वाऽऽनन्दकुमारस्य राज्याभिषेकं ततो गमिष्यामि धर्मघोषगुरुसमीपमिति । एवं चिन्तयन् अभिषेकदिनं प्रतीक्षमाणस्तिष्ठति । इतश्च पूर्वकृतकर्मदोषतोऽज्ञातनरेन्द्राभिप्रायो घटितो दुर्मतिना सहानन्दकुमारः । मन्त्रितं च ताभ्यां 'कथंचिद् वञ्चनाप्रयोगेण व्यापादयावो महाराजम्' इति । श्रु तोऽभिषेकवृत्तान्तः। मिथ्याभिनिवेशन स्वचित्तदुष्टतया च विपरोतः परिणत आनन्दस्य । चिन्तितं च तेन-ननमहमनेन एतेन व्यपदेशेन मारितुं व्यवसितः । ततः कथमहमेवं वञ्च्ये। अथवा सत्येऽपि एतस्मिन् वृत्तान्ते अलं मे उनसे कहा-“आनन्द कुमार के राज्याभिषेक का समय बतलायो।" उन्होंने कहा-"जो महाराज की आज्ञा ।" खकर उन्होंने पाँवा दिन बतलाया। तब अभिषेक के लिए मांगलिक वस्तुएँ लायी गयीं । जैसे मछली का जोड़ा, भरा हुआ कलश, सफेद फूल, कमल, सरसों, मिट्टी का ढेला, बैल, दही से भरे हुए मिट्टी के बड़े बर्तन, महारत्न, गोरोचन, सिंह का चमड़ा, सफेद छत्र, सुन्दर आसन, चमर, दूब, निर्मल मदिरा, महाध्वज, हाथी का मद, धान्य, रेशमी वस्त्र तथा अन्य दूसरे शुभ द्रव्य । इसी बीच राजा ने विचार किया-आनन्दकुमार का राज्याभिषेक करने के बाद धर्मघोष गुरु के पास जाऊँगा, ऐसा सोचकर अभिषेक के दिन की प्रतीक्षा करता रहा। इधर पूर्वकृत कर्म के दोष से राजा के अभिप्राय को न जानकर दुर्मति से आनन्द कुमार मिल गया। दोनों ने विचार किया-किसी प्रकार छल से राजा को मार डालें । अभिषेक का वृत्तान्त सुना । मिथ्या अभिप्राय रखने के कारण और चित्त की दुष्टता के कारण आनन्द पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ा । उसने सोचा-निश्चित ही इसने इस बहाने मारने का निश्चय किया है । अत: इस प्रकार मैं कैसे छलू" ? अथवा यह वृत्तान्त सही भी हो तो १. अन्नाणि अन्नाणि-च, २. एवं चितयंतो-च. ३. महाराय-च। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001881
Book TitleSamraicch Kaha Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1993
Total Pages516
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size13 MB
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