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वीओ भवो]
१४५ पइ विसमचित्तो। दिन्नं से जुवरज्जं।
अन्नया पच्चंतवासी आडविओ दुम्मई नाम सामंतराया दुग्गभूमिबलगविओ वित्थक्को सोहरायस्स । निवेइयं राइणो। विसज्जिओ तेण तस्सुवरि विक्खेवो। सभूमिबलगुणणं च सो पराजिओ तेण । निवेइए य कुदिओ राया, पयट्टो सयमेव अमरिसेणं। गओ पयाणयतियं । एत्थंतरम्मि सिंधुनईपुलिणे परिवहंते पयाणए करिवरोध रिहिएणं जलाओ नाइदूरम्मि 'अहो कट्ठ"ति जंपिरं दिटुं मणुविदं । गओ तं चेव भूमिभागं राया जाद दिट्ठो तेण महाकाओ अइकसिणदेहच्छवी विणितनयणविसजालाभासुरो गहियरसंतमंडुक्कगासो भयाणयवियरियाणणदुप्पेच्छो' दुययरपवेल्लिरंगो महया कुररेण गसिज्जमाणो जुण्णभुयंगमो, कुरशे वि दिगयकरोरुकाएण रत्तच्छवीभच्छएणं अयगरेण । जहा जहा य अयगरो कुररं गसइ, तहा तहा सो वि जुष्णभुयंगमं, जुण्णभुयंगमो वि य रसंतमंडुक्कयं ति। तं चेव एवंविहं जीवलोयसहावविन्भमं मूढहिय्याणंदकारयं सप्पुरिसनिव्वेय हेउं
तस्य यौवराज्यम्।
अन्यदा प्रत्यन्तवासी आटबिको दुर्मतिमि सामन्तराजो दुर्गभूमिबलगवितो वित्रस्तः सिंहराजस्य । निवेदितं राज्ञः। विवजितस्तेन तस्योपरि विक्षेपः । स्वभूमिबलगुणेन च स पराजितस्तेन । निवेदिते च कुपितो राजा प्रवृत्तः स्वयमेवामर्षेण । गतः प्रयाणक त्रिकम् । अत्रान्तरे सिन्धनदीपुलिने परिवहमाने प्रयाणके करिवरोपरिस्थितेन जलाद् नातिदूरे 'अहो कष्टम' इति जल्पद दृष्टं मनुजविन्दम् । गतस्तमेव भूमिभागं राजा यावद् दृष्टस्तेन महाकायोऽतिकृष्णदेहच्छविविनियन्नयनविषज्वालाभासुरो गृहीतरसमण्डूकग्रासो भयानकविवरिताननदुष्प्रेक्ष्यो द्रुततरप्रवेपमानाङ्गो महता कुररेण ग्रस्यमानो जीर्णभुजङ्गमः, कुररोऽपि दिग्गजकरोरुकायेन रक्ताक्षवीभत्सेनाजगरेण । यथा यथा च अजगरः कुररं असते, तथा तथा सोऽपि जीर्णभुजङ्गमम्, जीर्णभजङ्गोऽपिच रसमण्डूकमिति । तदेव एवंविधं जीवलोकस्वभावविभ्रमं मूढहृदयानन्दकारकं सत्पुरुषनिर्वेदहेतं
गया।
एक बार सीमावर्ती वन का दुर्मति नामक सामन्तराज दुर्गभूमि और बल के गर्व से गर्वित होकर सिंहराज की राज्यसीमा को पार कर गया। राजा को यह निवेदित किया गया। उसने उस पर सेना भेजी। अपनी भमि और सेना की विशेषता के कारण वह सेना उससे (दुर्मति से) पराजित हो गयी। निवेदन किये जाने पर कुपित राजा स्वयं ही क्रोधवश उद्यत हुआ। वह तीन प्रयाणों पर गया। इसी बीच जबकि सिन्धु नदी के तट पर उनका सैन्य समुदाय गमन कर रहा था, हाथी पर बैठे हुए राजा ने जल के समीप ही 'अहो कष्ट है', ऐसा कहते हए मनुष्यों के समूह को देखा । जब वह राजा उस स्थान पर गया तो उसने अत्यन्त विशाल और काले शरीर वाले बढे सर्प को देखा जो नेत्रों से निकलने वाली विष की ज्वाला से देदीप्यमान था, शब्द करते हुए मेंढक को निगल रहा था। वह साँप भयानक खुले हुए मुख से कठिनाई से देखा जाने योग्य था। उसके अंग अत्यधिक काँप रहे थे
और वह एक बड़े क्रौंच पक्षी द्वारा निगला जा रहा था। क्रौंच पक्षी को भी हाथी की सूड के समान शरीर वाला तथा लाल-लाल नेत्रों वाला भयंकर अजगर निगल रहा था। जैसे-जैसे अजगर क्रौंच पक्षी को निगलता था. वैसे-वैसे क्रौंच पक्षी भी बढ़े सांप को निगलता था तथा जैसे-जैसे क्रौंच पक्षी बूढ़े सांप को निगलता था, वैसे-वैसे ही बुढ्ढा साँप टर्र-टर्र करते हुए मेंढक को निगलता था । इस प्रकार की घटना को देखकर राजा खिन्नचित्त हो गया। वह घटना संसार के स्वभाव का विभ्रम थी, मूर्ख लोगों को आनन्द देने वाली थी तथा अच्छे
१. भयाणयदुप्पेच्छाणणो-च।
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