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बीमो भयो]
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जो वि य पुण सरथंभो सो जीये जेण जीवइ जीवो। तं किण्हधवलपक्खा खणंति दढमुंदुरसमाणा ॥१९६॥ जाओ य महुयरीओ डसंति तं ते उ वाहिणो विविहा। अभिभूओ जेहि नरो खणं पि सोक्खं न पावेइ ॥१९७॥ घोरो य अयगरो जो सो नरओ विसयमोहियमणो ति। पडिओ उ जम्मि जीवो दुक्खसहस्साई पावेइ ॥१९८॥ महुविदुसमे भोए तुच्छे परिणामदारुणे धणियं । इय वसणसंकडगओ विबुहो कह मद्दइ भोत्तुं जे ॥१६॥ तो भे भणामि सावय ! विसयसुहं दारुणं मुणेऊण । चवलतडिविलसियं पिव मणुयत्तं भंगुरं तह य ॥२०॥ सुयणसमागमसोक्खं चवलं जोव्वणं पि य असारं। सोक्खनिहाणम्मि सया धम्मम्मि मई दढं कुणसु ॥२०१॥ योऽपि च पुनः शरस्तम्बः स जीवितं येन जीवति जीवः । तत्कृष्णधवलपक्षौ खनतो दृढमुन्दुरसमानौ ॥१९६॥ जाताश्च मधुकर्यो दशन्ति तं, ते तु व्याधयो विविधाः । अभिभूतश्च यैर्नरो क्षणमपि सौख्यं न प्राप्नोति ।।१९७॥ घोरश्चाजगरो यः स नरको विषयमोहितमना इति । पतितस्तु यस्मिन् जीवो दुःखसहस्राणि प्राप्नोति ॥१६॥ मधुबिन्दुसमान् भोगान् तुच्छान् परिणामदारुणान् भृशम् । इति व्यसनसंकटगतो विबुध; कथं काङ्क्षति भोक्तुं यान् ॥१६॥ ततो भवन्तं भणामि श्रावक ! विषयसुखं दारुणं ज्ञात्वा। चपलतडिविलसितमिव मनुजत्वं भङ्गुरं तथा च ॥२०॥ सुजनसमागमसौख्यं चपलं यौवनमपि चासारम् । ।
सौख्यनिधाने सदा धर्मे मतिं दृढं कुरु ॥२०१॥ जो सरपत का गुच्छ है वह जीवन है जिससे प्राणी जीवित रहता है । काले और सफेद चूहे के समान कृष्ण तथा शुक्ल पक्ष दृढ़ता से आयु की जड़ें खोद रहे हैं ! जो अनेक मधुमक्खियाँ काटती हैं, शरीर में होने वाली अनेक प्रकार की व्याधियाँ हैं, जिनसे अभिभूत होकर मनुष्य क्षण भर भी सुख को नहीं पाता है। जो घोर अजगर है वह नरक है । विषयों से जिनका मन मोहित है ऐसे जीव उसमें पड़कर हजारों दुःख प्राप्त करते हैं । अत्यन्त दारुण परिणाम वाले तुच्छ भोग मधुबिन्दुओं के समान हैं। इसलिए विवेकशील मनुष्य आसक्ति के दुःख में फंसकर क्यों उन्हें भोगना चाहे ? अतः हे श्रावक ! तुझसे कहता हैं कि सांसारिक विषयसख को दारुण. मनुष्यत्व को चंचल बिजली के समान, सुजनों के समागम रूप सुख को विनाशशील तथा चंचल यौवन को असार जानकर सुख के सागररूप धर्म में सदा दृढ़मति करो ॥१६६-२०१।। १. दुक्खसहस्साइ-च, २. ता भो-ख, ३. मुणेउणं
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