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________________ वालो भवो ] एवं च जाव कुसुमावली पसाहिज्जइ, ताव पसाहणनिउणवारविलयाहिं पसाहियम्मि सीहकुमारे निवेइयं राइणो पुरिसदत्तस्स गहियसंकुच्छाएहिं मुणियजोइससत्थसारेहिं जोइसिएहि 'आसन्नं पसत्थं हत्थग्गहणमहत्तं' ति । तओ य सीहकुमारो नरवइसमाणत्तपरियणपवत्तिओ वज्जंतमंगलतूररवावरियसयलदिसामंडलो पवणपणच्चंतधयवडुग्धायसुंदररहवरारूढरायलोयपरियरिओ मणहरनट्टोवयारकुसलावरोहसुंदरीवंद्रणऽच्चंत'रुद्धरायमग्गो धवलप्रसाहियकरिवरारूढो मियंकसेणामरसेणकुमारपरियरिओ महुसरयसंगओ व्व कुसुमाउहो साहिलासमवलोइज्जमाणो पासायमालातलगयाहिं पुरसुंदरीहिं पत्तो सलीलं विवाहमंडवं ति। धरिओ य तस्स दारे विसेसुज्जलनेवच्छेणं गहियग्घसक्कारेणं अम्मयाजणेणं मग्गिओ 'आयारिमयं' ति। तओ हरिसवसुप्फुल्ललोयणो जाइयब्भहियं दाऊण ओइण्णो करिवराओ। भग्गा य से रयणकंचीसणाहेणं सोवण्णमुसलेणं भिउडि त्ति। तओ मंडवतलम्मि जणनिवहं निरंभिय नीओ समागमसुंदरोहिं वरो। एवं च यावत् कुसुमावली प्रसाध्यते, तावत् प्रसाधननिपुणवारवनिताभिः प्रसाधिते सिंहकुमारे निवेदितं राज्ञः पुरुषदत्तस्य गृहीतशकुच्छायः ज्ञातज्योतिःशास्त्रसारैः ज्योतिषिकः 'आसन्न प्रशस्तं हस्तग्रहणमुहूर्तम्' इति । ततश्च सिंहकुमारो नरपतिसमाज्ञप्तपरिजनप्रवर्तितो वाद्यमानमङ्गलतूर्यरवापूरितसकल दिग्मण्डलः पवनप्रनृत्यमानध्वजपटसमूहसुन्द ररथवरारूढ राजलोकपरिचरितो मनो. हरनाट्योपचारकुशलावरोधसुन्दरीवृन्देन अत्यन्तरुद्ध राजमार्गो धवलप्रसाधितकरिवरारूढो मृगाङ्कसेनाऽमरसेनकुमारपरिचरितो मधु-शरत्संगत इव कुसुमायुधः साभिलाषमवलोक्यमानः प्रासादमालातलगताभिः पुरसुन्दरीभिः प्राप्तो सलीलं विवाहमण्डपमिति । धृतश्च तस्य द्वारे विशेषोज्ज्वलनेपथ्येन गृहीतार्घसत्कारेणाम्बाजनेन मागितः 'आचारिमकम्' इति । ततो हर्षवशोत्फुल्ललोचनो याचिताभ्यधिकं दत्त्वा अवतीर्णः करिवरात् । भग्ना च तस्य रत्नकाञ्चीसनाथेन सौवर्णमुशलेन भकूटिरिति । ततो मण्डपतले जननिवहं निरुध्य नीतः समागमसुन्दरीभिर्वरः । इस प्रकार जब तक कुसुमावली सजायी जा रही थी तब तक सजाने में निपुण वेश्याओं द्वारा सिंहकुमार को सजाने पर, शंकु से छाया नापकर ज्योतिषशास्त्र के सार को जानने वाले ज्योतिषियों ने पुरुषदत्त राजा से निवेदन किया, "पाणिग्रहण का शुभमुहूर्त आ गया ।" तब राजा द्वारा आज्ञप्त सेवकों ने सिंहकुमार को सूचित किया। उस समय बजाये गये मंगल वाद्यों के शब्द से सारा दिशामण्डल भर गया। मनोहर नाट्यसेवा में कुशल अन्तःपुर की सुन्दरियों के समूह द्वारा राजमार्ग एकदम रुक गया था। पवन द्वारा प्रकम्पित ध्वजसमूह से सुन्दर लगने वाले श्रेष्ठ रथों पर चढ़े हुए राजपुरुषों द्वारा घिरा हुआ सफेद रंग से सजाये हुए श्रेष्ठ हाथी पर आरूढ़ होकर वसन्त और शरद से सेवित कामदेव के समान मृगांकसेन अमर कुमार से सेवित राजकुमार महलों के नीचे गयी हई नगर की स्त्रियों द्वारा अभिलाषापूर्वक देखा जाता हुआ उल्लास के साथ विवाहमण्डप में आया। विशेष उज्ज्वल आभूषण से अय॑सत्कार करती हुई माताओं के द्वारा विवाह के समय दिये जाने वाले आचारोपहार की याचना की जा रही थी। तब हर्ष से विकसित नेत्रों वाला याचना से भी अधिक दान देकर श्रेष्ठ हाथी से नीचे उतरा । रत्न से निर्मित करधनी (धेर) से युक्त सोने के मूसल से उसकी भृकुटि का स्पर्श किया गया । तब मण्डप के नीचे, मनुष्यों के समूह को रोककर आयी हुई सुन्दरियों के द्वारा वर को लाया गया। १, वंद्रणचंत -क. ख.।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001881
Book TitleSamraicch Kaha Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1993
Total Pages516
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size13 MB
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