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________________ [ समराइच्चकहा बद्धो य थणहरोवरि मणहरवरपउमरायदलघडिओ। पवरो पवंगबंधो नियंबसंसत्तओ तह य॥१५०॥ मत्ताहारो थणबद्धसंगसंजायकामराओ व्व । कंठमवलंबिऊणं नीवि से फुसिउमाढत्तो ॥१५१॥ कंठम्मि विमलमणहरमोत्तियदुसुरुल्लयं पिणद्धं से। कुंकुमकयराएसु य सवणसु रयणचक्कलयाओ॥१५२॥ उज्जोइयं च घणियं तिस्सा वयणं मियंकलेहाए। धवलकुडिलाए पवरं पोसलच्छोए व सुहाए ॥१५३॥ घणकसिणकुडिलमणहरसिरोरुहुग्घायकलियसोहिले । विमलं चूणारयणं निमियं से उत्तिमंगम्मि ॥१५४॥ पढमं दीसिहिइ इमा मोत्तूण ममं ति रयणछायाए । पडिवन्नमच्छराए व्व प्रोत्थयं तीए सव्वंगं ॥१५॥ बद्धश्च स्तनभरोपरि मनोहरवरपद्मरागदलघटितः । प्रवरः प्लवङ्गबन्धो नितम्बसंसक्तः तथा च ॥१५०॥ मुक्ताहारः स्तनबद्धसङ्गसंजातकामराग इव । कण्ठमवलम्ब्य नीवीं तस्या स्प्रष्टुमारब्धः ।।१५१।। कण्ठे विमलमनोहरमौक्तिकदुसुरुल्लकं पिनद्धं तस्याः। कुङ्कुमकृतरागयोः श्रवणयोः रत्नचक्रलते ॥१५२॥ उद्योतितं च घनं तस्या वदनं मृगाङ्कलेखया। धवलकुटिलया प्रवरं प्रदीपलक्ष्म्या इव शुभया ॥१५३।। घनकृष्णकुटिलमनोहरशिरोरुहसमूहकलितशोभावति । विमलं चूडारत्नं स्थापितं तस्या उत्तमाङ्गे ॥१५४॥ प्रथमं द्रक्ष्यते इयं मुक्त्वा मामिति रत्नच्छायया । प्रतिपन्नमत्सरया इव अवस्तृतं तस्या सर्वाङ्गम् ॥१५॥ ... स्तनों के ऊपर मनोहर श्रेष्ठ पद्मराग-मणियों के समूह से निर्मित श्रेष्ठ ढाल बांधी गयी थी जो नितम्ब भाग तक संलग्न थी। मोतियों का हार पहनाया, जो कि बांधे हुए स्तनों की आसक्ति से उत्पन्न कामराग के कारण गले में लटकता हुआ उसकी कमर में लपेटी हुई धोनी की गांठ को छूना प्रारम्भ कर रहा था। उसके कण्ठ में स्वच्छ मनोहर मोतियों का दुसरुल्लक नामक कण्ठ का आभरणविशेष पहनाया गया था। कुसुम से रंगे कानों में रत्नकुण्डल पहनाये गये । सफेद और तिरछी कढ़ी हुई कपूर की रेखा जो सायंकाल की शोभा-सी लगती थी, से उसका मुख उद्योदित हो रहा था। धने, काले, कुटिल और मनोहर बालों की शोभा से युक्त उसके सिर पर निर्मल चूडारत्न स्थापित किया गया। मुझे छोड़कर किसी अन्य को यह पहले देखेगी, इस प्रकार के मत्सरभाव को प्राप्त करके ही मानो रत्नों की छाया ने उसका सारा शरीर आच्छादित कर दिया था॥१५०:१५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001881
Book TitleSamraicch Kaha Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1993
Total Pages516
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size13 MB
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