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[समराइन्धकहा सव्व च्चिय धन्नाणं होइ अवस्था परोवयाराए।
बालससिस्स व उदओ जणस्स भवर्ण पयासेइ ॥११॥ तओ जहासुहेण धम्मनिरयाए पयोववारसंपावणेणं सुलद्धजम्माए अइकन्ता नव मासा अद्धट्ठमराइंदिया। तओ पसत्थे तिहिकरण-महत्त-जोए सुकुमालपाणि-पायं सयलजणमणोरहेहि देवी सिरिकता दारयं पसूय त्ति। निवेइओ रन्नो सुहं करियाभिहाणाए दासियाए पुत्तजम्मो । परितुट्ठो राया, दिन्नं च लीए पारिओसियं । कारावियं च बंधणमोषणाइयं करणिज्ज, पवत्तो य नयरे महाणंदो, सोहाविया नयरिजग्गा, पसमाविओ रयो कुंकुमजलेणं, विप्पइण्णाई रुंटतमयरसणाहाइं विचित्तकुसुमाइं, कमाओ हट्टभवणसोहाओ, पहभवणेसु समात्याइं मंगलतराई, सहरिसं च नच्चियं रायजणनागरेहिं ति। एवं च पइदिणं महामहंतमाणंदत्तोक्खमणुहवंताणं अइक्कंतो पढममासो। पइट्टावियं च से नाम बालस्स सुविणयदंसणनिमित्तणं सोहो त्ति । सो य विसिलैं पुण्णफलमणुहवंतो अभग्ग(ज्ज)माणपसरं पणईणं मणोरहेहि पयाण पुण्णेण--
सर्वा एव धन्यानां भवति अवस्था परोपकाराय ।
__ बालशशिन इवोदयो जनस्य भुवनं प्रकाशयति ॥११६॥ ततो यथासुखं धर्मनिरतया परोपकारसम्पादनेन सुलब्धजन्मकया अतिक्रान्ता नव मासा अर्द्धाष्टमरात्रिंदिवाः। ततः प्रशस्ते तिथिकरण-मुहूर्त-योगे सकुमारपाणि-पादं सकल जनमनोरथैः देवी श्रीकान्ता दारकं प्रसूतेति । निवेदितं राज्ञः शुभंकरीकाभिधानया दास्या पुत्रजन्म । परितुष्टो राजा, दत्तं च तस्यै पारितोषिकम् । कारितं च बन्धनमोचनादिकं करणीयम्, प्रवृत्तश्च नगरे महानन्दः, शोभिता नगरीमार्गाः, प्रशमितं रजः कुंकुम जलेन, विप्रकीर्णानि रबन्मधुकरसनाथानि विचित्रकुसुमानि, कृताः हट्टभवनशोभाः, पथभवनेषु समाहतानि मङ्गलतूर्याणि, सहर्षे च नर्तितं राजजननागरैरिति । एवं च प्रतिदिनं महामहद आनन्दसौख्यमनुभवतोरतिक्रान्तः प्रथममासः । प्रतिष्ठापितं च तस्य नाम बालस्य स्वप्नकदर्शननिमित्तेन सिंह इति । स च विशिष्टं पुण्यफलमनुभवन अभग्न (ज्य)मानप्रसरं प्रणयिनां मनोरथैः प्रजानां पुण्येन
सभी धन्य व्यक्तियों की अवस्था परोपकार के लिए होती है। बाल चन्द्र ना के समान मनुष्य का उदय लोक को प्रकाशित करता है ॥११६॥
अनन्तर सुखपूर्वक धर्म में रत रहते हुए, परोपकार सम्पादन के द्वारा अपने जन्म को सफल मानते हुए नौ मास तथा साढ़े आठ दिन व्यतीत हुए। तब उत्तम तिथि, करण, मुहूर्त का योग होने पर सुकुमार हाथ-पैरों वाले, समस्त लोगों के मनोरथ के अनुरूप पुत्र को देवी श्रीकान्ता ने प्रसव किया। शुभंकरिका नामक दासी ने राजा से पुत्र के जन्म के विषय में निवेदन किया। राजा सन्तुष्ट हुआ और दासी को पारितोषिक दिया। बन्दीजनों को छोड़ने आदि के कार्य कराये । नगर में बहुत खुशियाँ मनायी गयीं । नगर के मार्ग सजाये गये । कुंकुम के जल से धूलि पर छिड़काव किया गया। गुंजार करते हुए भौंरों से युक्त नाना प्रकार के फूल फैलाये गये । बाज़ार तथा भवनों की शोभा की गयी । रास्ते के भवनों में मंगल बाजे बजाये गये। राज्य के निवासी नागरिकजन हर्षपूर्वक नाच उठे । इस प्रकार प्रतिदिन अत्यधिक आनन्द और सुख का अनुभव करते हुए प्रथम मास बीत गया । उस बालक का नाम स्वप्नदर्शन के निमित्त से सिंह रखा गया। अपने विशिष्ट पुण्यों का अखण्डित फल भोगते हुए अपने परिजन वृन्द के मनोरथों के अनुरूप प्रजा के सौभाग्य से उस राजकुमार ने -
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