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________________ बीमो भयो] सुविणयम्मि तीए चेव रयणीए निळूमसिहिसिहाजालसरिसकेसरसडाभारभासुरो विमलफलिहमणिसिला-निहप-हंस-हारधवलो आपिंगलवट्टसुपसंतलो रणो मियंकलेहासरिसनिग्गयदाढो पिहुलमणहरवच्छत्थलो अइतणुयमज्झभाओ सुवट्टियकढिणकडि बडो आवलियदोहलंगूलो सुपइदिओरुसंठाणो कि बहुणा, सवंगदराहिरामो सीहकिसोरगो वयणेगमपरं पविसमाणो ति । पासिऊण य तं सुहविउद्घाए जहाविहिणा सिट्ठो दइयस्स। तेग भणियं--अणेयसामंतपणिवइय वलणजुयलो महारायसहस्स निवासट्ठाणं पुत्तो ते भविस्तइ । तो सा तं पडिसुणेऊग जहासुहं चिट्ठ । पत्ते य उचियकाले महापुरिसगम्भाणुभावेण जाओ से दाहलो । जहा -देमि सबसताणमभयदाणं, दोणाणाहकिवणाणं च इस्सरियसपयं, जइजणाणं च उवट्ठभदाणं, सव्वाययणाणं च करेमि पूयं ति । निवेइओ य इमो तीए भत्तारस्स । अब्भहियजायहरिसेगं संपाडिओ य तेणं । तस्स संपायणेण जाओ, महापमोओ जणवयाणं । अवि य मेव रजन्यां नि मशिखिशिखाजालसदशकेसरसटाभारभासुरो विमलस्फटिक-मणिशिला-निकषहंस-हारधवल आपिङ्गलसुप्रशान्तलोचनो मगाङ्कलेखासदृश निर्गतदाढः पृथुलमनोहरवक्षःस्थलो अतितनुकमध्यभागः सुवर्तितकठिनकटितट आवलितदीर्घलागल: सुप्रतिष्ठितारुसंस्थान:, किंबहुना सर्वाङ्गसन्दराभिराम: सिंहकिशोरको वदनेनोदरं प्रविशन्निति । दृष्ट्वा च तं सखविबुद्धया यथा. विधिना शिष्टो दयितस्य । तेन भणितम्-अनेकसामन्तप्रणिपतितचरणयुगलो महाराजशब्दस्य निवासस्थान पुत्रस्ते भविष्यति । ततः सात प्रतिश्रुत्य यथासुखं तिष्ठति । प्राप्ते चोचितकाले महापुरुषगर्भानुभावेन जातः तस्या दोहदः । यथा--ददामि सर्वसत्त्वानामभयदानम्, दीनानाथकृपणानां च ऐश्वर्यसम्पदम्, यतिजनानां च उपष्टम्भदानम्, सर्वायतनानां च करोमि पूजमिति । निवेदितश्चायं तथा भत्रे। अभ्यधिकजातहर्षेण सम्पादितस्तेन । तस्य सम्पादनेन जातो महाप्रमोदो जनपदानाम् । अपि च श्रीकान्ता के गर्भ में आया। श्रीकान्ता ने उसी रात स्वप्न में धूमरहित अग्नि की लौ के समान गर्दन के बालों से शोभित, स्वच्छ स्फटिक मणियों की शिला, कसौटी, हंस तथा हार के समान सफेद और लालिमा लिये हुए भूरे रंग वाला, शान्त नेत्रों वाला, चन्द्रमा की रेखा के सदृश जिसकी दाढ़ें निकल रही थीं, विस्तीर्ण और मनोहर वक्षःस्थल वाला, जिसका मध्यभाग अत्यन्त कृश था, अतिशय गोल कमर के कठिन भाग से भली-भांति मुड़ी हुई गोल-गोल लम्बी पूंछ से युक्त जिसकी जांधों का आकार प्रतिष्ठिा था, अधिक कहने से क्या, सभी अंगों से सुन्दर लगने वाला एक सिंह का बच्चा मुंह से उदर में प्रवेश करते हुए देखा। उसे देखकर (उसने) सुखपूर्वक जागकर यथाविधि पति से निवेदन किया। पति ने कहा - "अनेक सामन्तों से पूजित पादयुगल वाला, महाराज शब्द का निवासस्थान तुम्हारा पुत्र होगा।" तदनन्तर उसे स्वीकार कर वह सुखपूर्वक रहने लगी। उचित समय आने पर महापुरुष के गर्भ में आने के अनुरूप प्रभावशाली उसका दोहला हुआ कि 'मैं समस्त प्राणियों को अभयदान दं. दीन, अनाथ और कृष्ण लोगों को ऐश्वर्य सम्पदा दूं । यतियों को आहार तथा अपेक्षित वस्तुएँ दान करूं तथा सभी देवमन्दिरों की पूजा करूँ। उसने पति से यह (दोहद निवेदन किया। अत्यधिक हर्षित होकर राजा ने उसे पूर्ण किया। उसके पूर्ण करने पर देशवासियों को अत्यधिक हर्ष हुआ। और भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001881
Book TitleSamraicch Kaha Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1993
Total Pages516
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size13 MB
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