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________________ बीओ भवो गुणसेण-अग्गिसम्मा जं अणियनिहासि तं गयमियाणि । सीहा-णंदा य तहा जं भगियं तं निसामेह ॥११॥ अत्थि इहेव जम्बुहोवे दीवे अबरविदेहे खेते अपरिमियगुणनिहाणं तियसपुरवराणुगारि उज्जाणारामभूसियं समत्थमेइणितिलय पूयं जयउरं नाम नयरं ति। जत्थ सुरूवो उज्जलनेवत्थो कलावियक्खणो लज्जालुओ महिलायणो, जत्थ य परदारपरिभोयम्मि किलीवो, परच्छिद्दावलोयणम्मि अंधो, पराववायभासणम्मि मूओ, परदव्वादहरणम्मि संकुचियहत्थो, परोवयारकरणेक्कतल्लिच्छो पुरिसवग्गो। तत्थ य निसियनिक्कड्ढियासिनिद्दलियदरियरिउहत्थिमत्थउच्छलियबहलरुहिरारत्तमुत्ताहलकुसुमपयरच्चियसमरभूमिभाओ रापा नामेण पुरिसदत्तो ति । देवी य से सयलंतेउरप्पहाणा सिरिकता नाम । सो इनाए सह निरुवमें भोए भुज्जिसु । इओ य सो चंदाणणविमाणाहिवई देवो अहाउयं पालिऊण तो चुओ रिरिकताए गन्भे उववन्नो ति । दिट्ठो य णाए गुणसेनाऽग्निशर्माणौ यद् भणितमिहासीत् तद् गतमिदानीम् । सिंहाऽऽनन्दौ च तथा यद् भणितं तद् निशम्यताम् ।।११८।। अस्ति इहैव जम्बुद्वीपे द्वीपे अपरविदेहे क्षेत्रे अपरिमितगुणनिधानं त्रिदशपुरवरानुकारि उद्यानारामभषितं समस्तमेदिनीतिलकभतं जयपुरं नाम नगरमिति । यत्र सुरूप उज्ज्वलनेपथ्यः कलाविचक्षणोः लज्जालमहिलाजनः, यत्र च परदारपरिभोगे क्लीवः, परच्छिद्रावलोकने अन्धः, परापवादभाषणे मूकः, परद्रव्यापहरणे संकुचितहस्तः, परोपकारकरण कतल्लिप्सः पुरुषवर्ग: । तत्र च निशितनिष्कासितासिनिर्दलितदृप्तारपुहस्ति मस्तकोच्छलितवहलरुधिरारक्तमुक्ताफलकुसुमप्रकराचितसमरभूमिभागो राजा नाम्नः पुरुषदत्त इति । देवी च तस्य सकलान्तःपुरप्रधाना श्रीकान्ता नाम । सोऽनया सह निरुपमान् भोगानभुङ्क्त । इतश्च स चन्द्राननविमानाधिपतिर्देवो यथायः पालयित्वा ततश्च्युतः श्रीकान्ताया गर्भे उत्पन्न इति । दृष्टश्चानया (तया) स्वप्ने तस्या गुणसेन तथा अग्निशर्मा के विषय में जो कहा गया था, वह पूरा हो गया । अब सिंह और आनन्द के विषय में जो कहा था, वह सुनिए॥११८॥ इसी जम्बूद्वीप के अपरविदेह क्षेत्र में जयपुर नाम का नगर था । वह अपरिमित गुणों का निधान था, श्रेष्ठ देवनगर के समान लगता था, उद्यानादि से विभूषित था और समस्त पृथ्वी के तिलक के समान था ; जहां पर उज्ज्वल वेशभूषा वाली, कलाओं में दक्ष, लज्जाशील महिलाएँ थीं; जहाँ पर-स्त्री के साथ भोग करने में नपुंसक, दूसरे के दोष को देलाने में अन्धा, दूसरे की निन्दा करने में गूगा, दूसरे के धन का अपहरण करने में संकुचित हाथ वाला और परोपकार करने में ही एक मात्र लिप्सा वाला पुरुषवर्ग पा। वहाँ का राजा पुरुषदत्त था, जिसने म्यान से बाहर निकाली हुई तीक्ष्ण तलवार की धार से मारे हए गर्वीले शत्रु के हाथी के मस्तक से निकली हुई खून की धारा से रंगे मुक्ताफल रूपी कमलों के समह से युद्धभूमि की अर्चना की थी। उसकी समस्त अन्तःपुर में प्रधान श्रीकान्ता नामक देवी थी। वह उसके साथ अनुपम भोगों को भोग रहा था। इधर वह चन्द्रानन विमान का अधिपति देव आयुपूर्ण कर वहां से च्युत हो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001881
Book TitleSamraicch Kaha Part 1
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1993
Total Pages516
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & literature
File Size13 MB
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