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पटनो भायो]
अह सागरोवमाऊ जाओ चंदाणणे विमाणम्मि । देवाणुप्पत्तिविहि समासओ एत्थ वुच्छामि ॥२॥ ओहेणं चिय जह ते हवंति जंचऽच्छरादओ तेसि। निव्वत्तंतियरे' जह परमं देवस्स करणिज्जं ॥३॥ जह मेहाऽसणि तियसिंदचाव विज्जूण संभवो होइ। गयणम्मि खणेण तहा देवाण वि होइ उप्पत्ती ॥४॥ सो पुण मोत्तण इमं देहं विमल म्मि देवसयणिज्जे। निव्वत्तेइ सरीरं दिव्वं अंतोमुहुत्तेणं ॥६५॥ तम्मि समयम्मि तत्थ य गोयंति मणोहराइ गेयाई। कुसुमपयरं मयंति य सभमरयं तियसविलयाओ॥६६॥ नच्चंति दिव्वविभमसंपाइयतियसकोउहल्लाओ। वज्जतविविहमणहरतिसरीवीणासणाहाओ ॥७॥ अथ सागरोपमायुः जातः चन्द्रानने विमाने । देवानाम् उत्पत्तिविधि समासतोऽत्र वक्ष्यामि ॥१२॥ ओघेन एव यथा ते भवन्ति यच्च अप्सरादयस्तेषाम् । निर्वर्तयन्ति इतरे यथा परमं देवस्य करणीयम् ॥१३॥ यथा मेघाऽशनि त्रिदशेन्द्रचापविद्यतां भवति । गगने क्षणेन तथा देवानामपि भवति उत्पत्तिः ॥१४॥ स पुनः मक्त्वा इमं देहं विमले देवशयनीये । निर्वर्तयति शरीरं दिव्यम् अन्तम हर्तेन ॥६॥ तस्मिन् समये तत्र च गायन्ति मनोहराणि गेयानि । कुसुमप्रकरं मुञ्चन्ति च सभ्रमरकं त्रिदशवनिताः ॥६६॥ नत्यन्ति दिव्य विभ्रमसम्पादितत्रिदशकुतूहलाः ।
वाद्यमानविविधमनोहरत्रिस्वरीवीणासनीथाः ॥१७॥ उसकी सागरोपम आयु थी और चन्द्रानन विमान में उत्पन्न हुआ था। देवों की उत्पत्ति की विधि संक्षेप में यहाँ कहता हूँ। परम्परा के प्रवाह रूप से जैसे वे देव उत्पन्न होते हैं, वैसे ही उन्हें अपने अनुरूप अप्सराएँ आदि परिजन प्राप्त हो जाते हैं। वे परिजन उस उत्पन्न होने वाले देव के लिए करने योग्य सब कार्य सम्पादित करते हैं। जैसे आकाश में क्षण भर में बादल, वज्र, इन्द्रधनुष तथा बिजली की उत्पत्ति होती है उसी प्रकार देवों की भी उत्पत्ति होती है । वह जीव इस देह को छोड़कर निर्मल देवशय्या पर अन्तर्मुहूर्त में ही दिव्यशरीर प्राप्त कर लेता है । उस समय देवांङ्गनाएँ मनोहर गीत गाती हैं, और भ्रमरों से युक्त फूलों के गुच्छे छोड़ती हैं। नाना प्रकार की मनोहर 'त्रिस्वरी' नामक वीणा को बजाकर, देवों के मन में कौतूहल और विभ्रम उत्पन्न कर दिव्य नृत्य करती हैं ।।६२-६७॥
१, निव्वतंतिज्यरे,
२. ससंभमं ।
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