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[प्रथमः
कुमारपालप्रतिबोधे जस्स चलणारविंदं चरित्त-लच्छी-विलास-वासहरं । मुणि-भमरेहि अमुकं जिणमय-मयरंद-लुद्धेहिं ॥ सो विहरंतो मही-मंडलम्मि खंडिय-पयंड-भावरिऊ। सयल-भुवणे-क-बंधू धंधुक्कयं पुरवरे पत्तो ॥ सो तत्थ पणमण-त्थं समागयाणं जणाण पउराणं । संसारा-सारत्तण-पयासणिं देसणं कुणइ ॥ तं सोउं संविग्गो सरीर-सुंदेर-विजिय-सुरकुमरो। एक्को वणिय-कुमारो कयंजली भणिउमाढत्तो ॥ भयवं ! भवण्णवाओ जम्म-जरा-मरण-लहरि-हीरंतं । मं नित्थारसु सुचारित्त-जाणवत्त-पयाणेण ॥ गुरुणा वुत्तं बालय ! किं नामो कस्स वा सुओ तंसि । तो तस्स माउलेणं पयंपिअं नेमिनामेण ॥ भयवं ! इह-त्थि हत्थि व्व मोढकुल-विंझ-संभवो भद्दो । कय-देव-गुरु-जणच्चो चच्चो नामा पहाण-वणी॥ निम्मल-कुल-संभूया भूरि-गुणाभरण-भूसिय-सरीरा। तस्स-त्थि गेहिणी चाहिणि त्ति सा होइ मह बहिणी॥ जीए विमलं सीलं दद्द लज्जाए चंदमा निचं । चरम-जलहिम्मि मजइ कलंक-पक्खालणत्थं व ॥ ताणं तणओ एसो निरुवम-रूवो पगिढ-मइ-विहवो। भुवण-हरण-मणोहर-चिंचइओ चंगदेवो त्ति ॥ गन्भा-वयार-समए इमस्स जणणीए सुविणए दिट्ठो। निय-गेहे सहयारो समुग्गओ वुड्डिमणुपत्तो॥ जा पुप्फ-फला-रंभो तत्तो मुत्तूण मंदिरं मज्झ । अन्नत्थ महारामे मणाभिरामे इमो पत्तो॥ छायाए पल्लवेहिं कुसुमेहिं फलेहिं तत्थ पवरेहिं । बहुय-जणाणं एसो उवयारं काउमाढत्तो ॥ गभगए वि इमिस्सि इह देसे नट्ठमसिव-नामं पि । तह अणभिन्नो जाओ लोओ दुन्भिक्ख-दुक्खस्स ॥ परचक्क-चरड-चोराइ-विद्दवा दूरमुवगया सव्वे । न फुरंति घूय-पमुहा मेह-च्छन्ने वि दिणनाहे ॥
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