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कुमारपालप्रतिबोधे
एवं संविग्ग-मणो राया निय-मंदिरम्मि संपत्तो । हक्कारिण पुच्छर एगंते सावयं एगं ॥ संपइ सिरि-दत्तगुरू गुणवंतो कत्थ विहरइ पसे । सो कहइ डिंडुयाणयपुरंमि मुणिपुंगवो अत्थि | तो राया रयणीए कस्स वि अनिवेइऊण निक्खतो । तुरयंमि समारुहिऊण डिंडयाणयपुरे पत्तो ॥ सिरिदत्तगुरुं नमिऊण तस्स कहिऊण नियय- वृत्तंतं । जंप संपइ काउं अणुग्गहं देहि मह दिक्खं ॥ गुरुणा वृत्तं जुत्तं उत्तम-सत्तस्स तुज्झ नर-नाह । रज्जं तणं व मुत्तुं करेसि जं संजम-ग्गहणं ॥ नहि संजमाउ अन्नो संसारुच्छेय-कारणं अस्थि । नव-जलहरं विणा किं निव्वडइ दवानलं को वि ॥ रन्ना अणप्पमुलं एवं एक्कावलिं समप्पेउं । जिणधम्म-निम्मल - मणा पयंपिआ सावया एवं ॥ कार वह जिणायणं इमीए एक्कावलीइ मुल्लेण । तेहि वि तह त्ति पडिवजिऊण तं झत्ति कारविर्यं ॥ तं अत्थि तत्थ अज्ज वि चडवीस-जिणालयं जिणाययणं । पुन्नं व मुत्तिमंतं जसभह - निवस्स जं सहइ ॥ रन्ना पुण पडिवन्ना सिरि- दत्तगुरुस्स चलण- मूलम्मि | अंतर - रिउ - वह दक्खा दिक्खा निसियाऽसि धार व्व ॥ एगंतरोववासे जा जीवं अंबिलं च पारणए । काहं ति तेण विहिया वय-गहण दिणे चिय पन्ना || सुय - सागर - पारगओ सूरि-पयं पाविऊण जसभहो । भुवणे चिरं विहरिओ पडिबोहंतो भविय वग्गं ॥ ससमय-परसमय-विक समए तेणावि निय-पए ठविओ । निज्जिय- पज्जुन्न- भडो पज्जुन्नो नाम वर- सूरि ॥ अह जसभद्दो सूरी तिव्व-तवच्चरण- सोसिय- सरीरो । निय - परिवार समेओ आरूढो उज्जयंत- गिरिं ॥ रेवगिरिंद-मउडं व सुकय-लच्छी-विलास-कमलं व । भव - जलहि जाणवत्तं व जिण-हरं गणहरो पत्तो ॥
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