________________
कुमारपालप्रतिबोधे
[प्रथमः सो पाडलिपुत्ताओ जूय-पसत्तोऽवमाणिओ पिउणा। नीहरिओ पुहवीए भममाणो आगओ तत्थ ॥ ९४ ॥ गुलिया-पओग-निम्मिय-वामण-रूवेण विविह-कुहगेहिं । गंधव्वाइ-कलाहि य तेण जणो विम्हयं नीओ ॥ ९५ ॥ तत्थ-त्थि देवदत्ता गणिया रूवाइ-गुण-गरुय-गव्वा । सा पुरिसेण न केण वि रंजिजइ सुयमिणं तेण ॥ ९६॥ सो तीऍ खोहणत्थं गोसे सविहंमि विविह-भंगीहिं। बहुमन्न-वेह-मणहरमाढत्तो गाइडं गीयं ॥ ९७ ॥ तं सुणिय देवदत्ता चिंतइ वाणी अहो असामन्ना। ता को इमो ? त्ति जाणण-निमित्तमह पेसए चेडी ॥९८॥ दढे तमागया य चेडी विन्नवइ देवदत्ताए । गाएइ वामणो को वि एस देहेण न गुणेहिं ॥ ९९ ॥ सा तस्साणयणत्थं चेडिं पट्टवइ माहविं खुजं । गंतूण मूलदेवं सा जंपइ सामिणी अम्ह ॥ १०० ॥ विन्नवइ देवदत्ता अणुग्गहं कुणह एह अम्ह घरं । तेण भणियं निसिद्धो बेसासंगो विसिहाण ॥ १०१॥ खुज्जाए तह एसो पन्नविओ विविह-भणिइ-निउणाए। जह चलिओ तीए सह न दुक्करं किं पि कुसलाणं ॥ १०२॥ विजा-कलासु कुसलेण तेण अप्फालिऊण सा खुज्जा। पउणीकया पहिट्ठा तीए नीओ घरं एसो ॥१०३ ॥ दिट्ठो य देवदत्ताइ वामणो एस अउव्व-लावण्णो। विम्हिय-मणाइ तीए तस्स कया उचिय-पडिवत्ती ॥ १०४॥ खुज्जा अणेण पउणीकय त्ति मुणिऊण विम्हिया बाढं ।
सा रंजिया य इमिणा महुरालावं कुणंतेण ॥ १०५॥ जओ
अणुणय-कुसलं परिहास-पेसलं लडह-वाणिदुल्ललियं । आलवणं पि हु छेयाण कम्मणं किमिह मूलीहिं ॥ १०६॥ पत्तो वीणागारे तत्थेक्का तेण वाइया वीणा।। तो भणइ देवदत्ता भद्द ! कला अविकला तुज्झ ॥ १०७ ॥ जंपेइ मूलदेवो उज्जेणीए जणो अहो निउणो । मुणइ गुणा-गुण-वुत्तं तो भणियं देवदत्ताए ॥ १०८ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org