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प्रस्तावः ]
मूलदेवकथानकम्
मोक्ख-तरु -बीय-भूयं सम्मत्तं आयरंति परे ॥ ८० ॥ अह अन्नया निसाए सज्झाय-झुणिं मुणीण सोऊण । जसभद्द- निवो संवेग-परिगओ चिंतए चित्ते ॥ ८१ ॥ धन्ना एए मुणिणो काउं जे सव्व-संग परिहारं । पर-लोय-मग्गमेकं मुक्क-भवासा पर्यपंति ॥ ८२ ॥ ता एयाण सुणीणं पय-पउम-नमंसणेण अप्पाणं । परिगलिय- पाव -पंकं पहाय - समए करिस्सामि ॥ ८३ ॥ एवं धम्म-मणोरह - कलिय-मणो पत्थिवो लहइ निहं । मंगल- तूर - वेणं पडिबुद्धो पच्छिमे जामे ॥ ८४ ॥ कय-सयल-गोस- किच्चो समत्त सामंत-मंति- परियरिओ । करि-तुरय-रह- समेओ पत्तो सिरिदत्त गुरु-पासे ॥ ८५ ॥ भूमि-निहिउत्तमंगो भत्ति-समग्गो गुरुं पणमिऊण । पुरओ नियो निविट्ठो कयंजली भणिउमादत्तो ॥ ८६ ॥ भयवं ! धन्ना तुब्भे संसारासारयं मणे धरिडं । जे चत्त- सव्व-संगा पर - लोयाराहणं कुणह ॥ ८७ ॥ अम्हारिसा अहन्ना परलोय - परंमुहा महारंभा । अनियत्त - विसय-तण्हा जे इहभव - मेत्त - पडिबडा ॥ ८८ ॥ अह जंपिडं पवत्तो सिरिदत्तगुरू नहंगणं सयलं । तव - सिरि-मुत्ता- पंतीहि दंत-कंतीहि धवलंतो ॥ ८९ ॥ मुह-ससि - पवेस- सुविणोवमाइ दुलहं नरत्तणं लहिडें । खणमेकं पि माओ बुहेण धम्मे न कायव्वो ॥ ९० ॥ रन्ना भणियं भयवं ! का सा सुविणोवम त्ति ? मे कहसु । गुरुणा भणियं नरवर ! कहेमि जं पुच्छिअं तुमए ॥ ९१ ॥
मूलदेवकथानकम्
अस्थि पुरी उज्जेणी अवंती-विसयावयंस- सारिच्छा | सरकूववावि-पमुहा जलासया न उण जत्थ जणा ॥ ९२ ॥ तत्थ-त्थि मूलदेवो राय-सुओ पवर- रूव-लावन्नो । नीसेस - कला-कुसलो विन्नाण-निही गुण-समग्गो ॥ ९३ ॥
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