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प्रस्तावः]
कुमारपालस्य धर्मस्वरूपजिज्ञासा कमल-वणं व दिणिंदे अत्थमिए मउलियं भुवणं ॥५२॥ तत्तो पहाण-पुरिसा निय-मइ-माहप्प-विजिय-सुर-गुरुणो । रज्जमणाहं दटुं जपंति परप्परं एवं ॥५३॥ आसि सिरि-भीमएवस्स नंदणो जणिय-जण-मणाणंदो। कय-सयल-खोणि-खेमो नामेणं खेमराउ ति ॥५४॥ तस्स तणओ तिणीकय-कंदप्पो देह-सुंदरत्तेण। देवप्पसाय-नामो देव-पसायण-पहाण-मणो॥५५॥ तस्संगरुहो गरुओ पर-रमणि-परंमुहो महा-सूरो। तियस-सरि-सरिस-कित्ती तिहुयणपालो त्ति नामेण ॥ ५६ ॥ तस्स सुओ तेयस्सी पसन्न-वयणो सुरिंद-सम-रूवो। देव-गुरु-पूयण-परो परोवयारुजओ धीरो ॥ ५७॥ दक्खो दक्खिन्न-निही नयवंतो सव्व-सत्त-संजुत्तो। सूरो चाई पडिवन्न-वच्छलो कुमरवालो त्ति ॥५८॥ एसो जुग्गो रजस्स रजलक्खण-सणाह-सव्वंगो। ता झत्ति ठविजउ निग्गुणेहिँ पजत्तमन्नेहिं ॥ ५९॥ एवं परुप्परं मंतिऊण तह गिण्हिऊण संवायं । सामुहिय-मोहुत्तिय-साउणिय-नेमित्तिय-नराण ॥ ६०॥ रजंमि परिढविओ कुमारवालो पहाण-पुरिसेहिं । तत्तो भुवणमसेसं परिओस-परं व्व संजायं ॥ ६१॥ तुट्ट-हार-दंतुरिय-घरंगण नच्चिय-चारु-विलास-पणंगण । निन्भर-सद्द-भरिय-भुवणंतर वजिय-मंगल-तूर-निरंतर ॥६२॥ साहिय-दिसा-चउक्को चउ-विहोवाय-धरिय-चउ-वन्नो । चउ-वग्ग-सेवण-परो कुमर-नरिंदो कुणइ रज्जं ॥ ६३ ॥
कुमारपालस्य धर्मस्वरूपजिज्ञासा अह अन्नया वियड्डे बहुणो बहु-धम्म-सत्थ-नाणड्डे । विप्पपहाणे हक्कारिऊण रन्ना भणियमेवं ॥ ६४॥ करि-तुरय-रह-समिद्धं नरिंद-सिरि-कुसुम-लीढ-पय-वीदं । लंघिय-वसण-सहस्सो संपत्तो जं अहं रजं ॥६५॥ तं पुत्व-भवे धम्मो सुहेक-हेऊ कओ मए को वि ।
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