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कुमारपालप्रतिबोधे
[प्रथमः जिणधम्मंमि पयत्तो कायव्वो बुद्धिमंतेण ॥ १० ॥ सग्गो ताण घरंगणं सहयरा सव्वा सुहा संपया
सोहग्गाइ-गुणावली विरयए सव्वंगमालिंगणं । संसारो न दुरुत्तरो सिव-सुहं पत्तं करंभोरुहे
जे सम्मं जिणधम्म-कम्म-करणे वदंति उद्वारया ॥ ११ ॥ सप्पुरिस-चरित्ताणं सरणेण पर्थपणेण सवणेण । अणुमोयणेण य फुडं जिणधम्मो लहइ उक्करिसं ॥१२॥ पुव्वं जिणा गणहरा चउदस-दस-पुग्विणो चरिम-तणुणो। चारित्त-धरा बहवो जाया अन्ने वि सप्पुरिसा.॥ १३ ॥ तह भरहेसर-सेणिय-संपइनिव-पभिइणो समुप्पन्ना। पवयण-पभावणा-गुण-निहिणो गिहिणो वि सप्पुरिसा ॥ १४ ॥ तेसिं नाम-ग्गहणं पि जणइ जंतूण पुन्न-पन्भारं । सग्गा-पवग्ग-सुह-संपयाउ संपाडइ कमेण ॥ १५ ॥ संपइ पुण सप्पुरिसो एको सिरि-हेमचंद-मुणि-णाहो । फुरियं दूसम-समए वि जस्त लोउत्तरं चरियं ॥ १६॥ दुइओ वि दलिय-रिउ-चक-विकमो कुमरवाल-भूपालो । जेण दढं पडिवन्नो जिण धम्मो दूसमाए वि ॥ १७॥ केवल-नाण-पलोइअ-तइलोकाणं जिणाण वयणेहिं । पुवनिवा पडिबुद्धा जिणधम्मे जं न तं भुजं ॥ १८ ॥ भुजमिणं जं राया कुमारवालो परूढ-मिच्छत्तो। छउमत्थेण वि पहुणा जिणधम्म-परायणो विहिओ ॥ १९॥ तुलिय-तवणिज-कंती सयवत्त-सवत्त-नयण-रमणिजा। पल्लविय-लोय-लोयण-हरिस-प्पसरा सरीर-सिरी ॥ २० ॥ आबालत्तणओ वि हु चारित्तं जणिय-जण-चमकारं । बावीस-परीसह-सहण-दुद्धरं तिव्व-तव-पवरं ॥२१॥ मुणिय-विसमत्थ-सत्था निम्मिय-वायरण-पमुह-गंथ-गणा। परवाइ-पराजय-जाय-कित्ती मई जय-पसिद्धा ॥ २२ ॥ धम्म-पडिवत्ति-जणणं अतुच्छ-मिच्छत्त-मुच्छिआणं पि । महु-खीर-पमुह-महुरत्त-निम्मियं धम्म-वागरणं ॥ २३ ॥ इच्चाइ-गुणोहं हेमसारिणो पेच्छिऊण छेय-जणो।
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