________________
... कुमारपालप्रतिबोधे कुविय-कयंत-चवेड-वियड-फड-फुक्क भयावहु, तरल-ललंत-दु-जीह जीव-कवलण-कय-भोयणु,
मुत्ति-मंत तं पाव-पुंज गंजारुण-लोयणु, पसरन्त-रोस-भरु निन्भरु वि न भउ भुअंगमु तमु करइ । तुह पासनाह दुह-निद्दलणु नाममंतु जो संभरइ ॥ तडि-कडार-केसर-कडप्प-टिविडिक्किय-कंधरु, __ गय-मय-हरण-रउद्द-सह-पूरिय-गिरि-कंदरु, निविड-चवेडा-दलिय-दरिय-मयगल-कुंभस्थल,
कुडिल-दाह-दुपेच्छु पुच्छ-अच्छोडिय-महियलु, तसु फुड फुलिंगनयणु दूरिण केसरि उसरइ । उद्दाम-उवद्दव-विद्दवणु पासनाहु जो मणि धरइ ॥ उल्लसंत-जाला-कलाव-कवलिय-गयणंगणु, __ पसरिय-फार-फुलिंग-संग-दु-गुणिय-तारा-गणु, वित्थरंत-धूमंधयार-संरुड-दियंतरु,
डज्झमाण अपमाणं पाणि विरसा-रव-निन्भरु, पज्जलंधु-जलणु जलु पूर जिम्ब तसुसंतावु न संजणइ । दुह-पुंज-कुंज-भंजणु पवणु पासनाह जो संथुणइ ॥ सगुडु-स-धयवड-गडपडंत-गय-षडषडणुक्कड,
पहरण-निवह-विहत्थ-हत्थ-अभिडिय-भडुब्भडु, तुरय-खुर-क्खय-खोणि-रेणु-भर-कुंचिय-नहलु, _पयडिय-तंडव-रुंड-मुंड-मंडिय-महि-मंडल, नित्थिरिवि समर-संमह नर तिजय-लच्छि निच्छई लहहि । पहु पासनाह निम्मल-चरिय जे तई चित्ति समुव्वहहि ॥ हरिण-हरिस-संहरण-सद्द-सदुल-दुहावह,
तक्कर-चक्क-मुसिजमाण-माणव-धण-विग्गह, भीम-भिल्ल-दुल्लंघ-लील-परिसकिर-करि-कुल,
भमिर-भूय-झोटिंग-जक्ख-रक्खस-सय-संकुल, खेमेण महाडवि उत्तरिवि ते नर पाविहि निय-सरणु । पहु पासनाह कलिमल-हरण पइं पडिवजहि जे सरणु ॥ ततः पञ्चनमस्कारधम्मस्मरणपूर्वकम् ।। वन्दित्वा पार्थिवो देवान् भवोद्विग्नोऽभ्यधादिदम् ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org