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प्रस्तावः ]
स्थूलिभद्र-कथा। अणुंअत्तिउ एहु मई तवह भग्गु असहाउ घरि मह,
ता पुव्व-पुन्नोदइण
फलि अत्तण संपइ मणोरह, लडुउं दुडु बिडालिअहिं सउणिं आमिसु पत्तु । हिअय पणञ्चसि किं न तुहुं सिह कज्जु समत्तु ॥ ७० ॥
ताव सुंदरु करिवि सिंगारु, मुणिपासि वञ्चिवि चवइ
विरह-जलण-संत्ततु मह मणु, तं अन्ज विज्झविउ तुह
___ अमय-सरिसु जं लड्डु दंसणु, हउं ठिअ एत्तिअ दिण दुहिण चत्ताऽवर नरसंग । पेसिअ सुहय संगम सुहिण निव्वावहि महु अंग ॥ ७१ ॥
तहु सिणेहहु ताहत्ताणिआऽहं, तहं नाह गुण-कित्तणहं
किं न देसि पडिवयणु निट्टर, किं एरिसु जुत्तु मई
___ अवगणेसि जं पिम्म-बंधुर, थूलभद्द इउ जंपिओ वि जं पडिवयणु न देइ । ताव कोस कुसुमिय-मयण विविह विआर करेइ ॥ ७२॥
कर समुक्खिवि पयड भूअ मूलु, __ आमेत्तु बंधइ ददु वि अंगभंगु पुण पुण पयासइ,
उवरिल्लु दीसंत थण
संठवेइ सविलासु भासइ, लायनिक-निवास-पउ पयडइ नाहि-पएसु। नियइ तिरिच्छिहिं लोअणिहि सिढिलइ नीवि-निवेसु ॥७३॥
इअ निम्मिय मयण-विलास कोस, ___ मुणि थूलभद्दु पेच्छिवि सतोस । सविसेस वियंभिअ धम्मझाणु,
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