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कुमारपालप्रतिबोधे
[पञ्चमः तुहं देज वररूइहि करि मयण-हलिण भाविअउं पंकउ,
अन्नाइं वन्नाण करिय
तयणु तेण सव्वं पि तह कर, तं अग्घाइउ वररुइण वमिअउ मज खणेण । तो नीहारिवि निग्गहिउ तत्त-तउअ-पाणेण ॥६५॥ थूलभद्दु वि कुणइ तव तिव्वु, अह पत्तउ कुसुमपुरि
गुरुसमेउ पाउस-समागमि, तहिंगच्छि गिण्हहिं नियम
खवग तिन्नि वन्निय जिणागमि, चउमासु वि सीहह गुहहिं निरसणु एक्कु निसन्नु । बीअउ दिठिविसाहि-बिलि कूवफलइ तह अन्नु ॥६६॥ ते तिन्नि वि उवसंता सीह-भुअंगा-ऽरहटियमणुस्स । अणिहीण तवनिहीणं मुणीण तेसिं पहावेण ॥ ६७ ॥
थूलभद्दिण भणिउ गुरुपासि, वसिअव्वु चउमास मई __ कोस-वेस-घरि निच्चभोअणि, तो पत्तु तहिं सम्वविधि
सा पहि चिंतेइ निय-मणि, एइ दइउ तव भग्गु इहु विरइ वि अब्भुट्टाणु ॥ एह किं करिमि भणेह मुणि मग्गइ वास-ट्ठाणु ॥ ६८॥
कोस जंपइ वसह इह नाह !, को धरइ घर पत्थियउ ।
तुम्ह कन्जि जो वहइ निय-तणु, सइ लच्छिहिं इंति अहि
कवणु देइ झंपउ सचेअणु, थूलभह तो ठाइ मुणि उववणि घरि कोसाहि । निद्ध भिक्ख सो तहिं जि घरि गिण्हइ असम-समाहि ॥ ६९ ॥
कोस चिंतइ मज्झ अणुरत्तु,
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