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________________ स्थूलिभद्र कथा | इय रन्ना सो भणिओ चिंतेसु असोग-वणियाए ॥ ४६ ॥ एवं ति भणिय तो धूलभहु, चिंतेइ तत्थ परमत्थ भद्दु । मणुयत्तह् सारु ति वग्ग-सिद्धि, तिहि विग्धउ अहिगार - रिद्धि ॥ ४७ ॥ जं तत्थ राय-चित्ताणुकूल, आरंभ कुर्णतह पाव-मूल । क मंतिहि जायइ विमल - धम्मु, जिणि लग्भइ सास सिद्धि सम्मु ॥ ४८ ॥ पर - पीड करे विणु जं पभूअ, गिन्हहिं निउ गिरुहि रूव जलूअ । नरनाहिण धिप्पइ नं पि दच्वु, प्रस्ताव: ] Jain Education International निप्पीलिवि सहुं पाणेहिं सव्व ॥ ४९ ॥ पर-वसहं सव्वु भय-भिभलाई, अन्नन्न-पओअण वाउलाहं । अहिगारि-जणहं कामभोअ, संभवहिं वियंभिअ गुरु- पमोय ॥ ५० ॥ कोसा- घर बारस वच्छरेहिं, विसइहिं न तित्तु लोउत्तरेहिं । बहु रज्ज- कज्ज वक्खित्त-चित्तु, किं संपइ होहिसि मूढ - चित्तु ॥ ५१ ॥ पइ जम्म-मरणु कल्लोलमत्तु, भव - जलहि भमिवि मणुअन्तु पन्तु । परिहरिविविसय-फलु तासु लेहि, किं कोडि कवडिई हारवेहि ॥ ५२ ॥ वज्जेवि धम्मु जो विसय- सुक्खु, परिणाम - विरसु सेबइ सुर- रक्खु । सो पिइ दुडु जर गहिउ सुह, सो भक्खइ मंसु गलंतु कुट्टु ॥ ५३ ॥ दिण पंच करिवि नर - वइ - निओगु, For Private & Personal Use Only ४५१ www.jainelibrary.org
SR No.001873
Book TitleKumarpal Pratibodh
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorJinvijay
PublisherCentral Library
Publication Year1920
Total Pages564
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size11 MB
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