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कुमारपालप्रतिबोधे
[पश्चमः
तुहुं नंदह पडिहारु तउ करहि महार वुत्तु ॥ ४१ ॥
नंद कुद्धउ तेण मह सीसु,
तुहु खंडि पणमंतयह
तासु पुरओ असिदंड घाइण, रक्खेसु ती सेसु कुल
मज्झ दोसि हम्मंतु राइण, इय सुणि सिरियउ पिउवयणु करयल-ढकिय कन्नु । कंपइ हा! हा! केम्व हउं पिउवहु करउं अहन्नु ॥ ४२ ॥
मंति साहइ वच्छ ! मा झूर,
इउ नीइ-सस्थिहिं कहिउ __ कुलहि कजि जं एक मुच्चइ, कुलरक्खिण कारणिग
तेण मज्झ मरणं पि रुच्चइ, हउँ खाइसु विसु तालउडु नंद पणामु करंतु । पिउवह-पावि न लिप्पिहिसि मई गयजीवु हणंतु ॥ ४३ ॥
तेण मन्निउ कह वि पिउवयणु, तो मंतिण तालउडु
खडु नंदरायह नमंतिण, सिरिएण तक्खणि खंडिउं
तासु सीसु खग्गिण फुरंतिण, हा! हा ! करिवि भणेइ निवु सिरिअय ! किउ किमकज्जु । सो जंपइ जो पहु अहिउ तिण पिउणा वि न कज्जु ॥४४॥
ताव चिन्तइ मंति-मय-किच्चि, राएण सिरिअउ भणिउ
देमि तुज्झ मंतित्तु तुट्टउ, सो जंपइ पयह उचिउ
थूलभद्दु महु अस्थि जेठ्ठउ, सो नंदिण कोसाघरह भणिअउ हक्कारेवि । गिन्हसु पिउपउ तिण भणिउ गिन्हउं पहु! चिंतेवि ॥४५॥ इमिणा मिसेण एसो मा वच्चउ पुण घरम्मि गणियाए ।
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